यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 30-09-2025
प्रदेश भर में विगत दशकों से बसे हुए हिमाचली नागरिकों की जमीन एवं मकानों को बचाने की दृष्टि से भारतीय जनता पार्टी द्वारा "जमीन बचाओ, मकान बचाओ समिति का गठन किया गया है। इस समिति का गठन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल द्वारा किया गया जिनके संयोजक भाजपा के वरिष्ठ प्रवक्ता एवं विधायक त्रिलोक जमवाल , सदस्य सचिव प्रदेश उपाध्यक्ष बिहारी लाल शर्मा , सदस्य विधायक सुधीर शर्मा , मुख्य प्रवक्ता राकेश जमवाल एवं प्रदेश उपाध्यक्ष बलबीर वर्मा होंगे। सदस्य एवं विधायक सुधीर शर्मा ने कहा कि प्रदेश भर के दिहाड़ीदार मजदूर और किसान , जो कई पीढ़ियों से सरकार द्वारा दी गई भूमि पर रह रहे हैं। आज कांग्रेस सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण फिर से बेघर होने की कगार पर हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने संकल्प लिया है कि इस लड़ाई को निर्णायक मोड़ तक ले जाया जाएगा, ताकि भूमिहीनों को फिर से भूमिहीन न होना पड़े, हमारी लड़ाई केवल वंचित वर्ग के लिए है। हिमाचल प्रदेश भू-राजस्व अधिनियम , 1954 की धारा 163 , सामान्य भूमि पर किए गए अतिक्रमणों को रोकने और हटाने से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी सामान्य भूमि पर अतिक्रमण करता है, तो राजस्व अधिकारी स्वयं या किसी अन्य सह-मालिक के आवेदन पर अतिक्रमण करने वाले व्यक्ति को भूमि से बेदखल कर सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हिमाचल प्रदेश भू-राजस्व अधिनियम में एक धारा 163-ए भी थी, जो सरकारी भूमि पर हुए अतिक्रमणों को नियमित करने की शक्ति राज्य सरकार को देती थी। हालांकि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने 5 अगस्त 2025 को इस धारा को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। सितंबर 2025 में , सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के इस फैसले पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है, जिससे भूमि पर बेदखली के खतरे का सामना कर रहे किसानों को कुछ राहत मिली है।
हिमाचल में भूमि नियमितीकरण नीति के लिए 1.65 लाख लोगों ने आवेदन किया था। याचिकाकर्ता पूनम गुप्ता की ओर से नीति की वैधता भूमि को चुनौती दी गई थी। हिमाचल में 5 बीघा भूमि नियमितीकरण वाली नीति 2002 बनाई गई थी। नीति के तहत सरकारी पर अतिक्रमण करने वालों लोगों से तत्कालीन राज्य सरकार ने आवेदन मांगे थे। इसके तहत भूमि को नियमितीकरण करने के लिए 1.65 लाख से अधिक लोगों ने आवेदन किया था। पूर्व भाजपा सरकार ने भू-राजस्व अधिनियम में संशोधन कर धारा 163-ए को जोड़ा, जिसके तहत लोगों को 5 से 20 बीघा तक जमीन देने और नियमितीकरण करने का फैसला लिया गया था। अगस्त 2002 में हाईकोर्ट के दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने प्रक्रिया जारी रखने के आदेश दिए थे , जबकि पट्टा देने से मना कर दिया था।