रिपोर्ट में खुलासा : तिब्बत में चीन का सैन्य विस्तार नाजुक हिमालयी पर्यावरण को पहुंचा रहा भारी नुकसान
तिब्बत में चीन का सैन्य विस्तार नाजुक हिमालयी पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। इसके साथ ही क्षेत्रीय जलवायु और जल सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहा

यंगवार्ता न्यूज़ - धर्मशाला 21-08-2025
तिब्बत में चीन का सैन्य विस्तार नाजुक हिमालयी पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। इसके साथ ही क्षेत्रीय जलवायु और जल सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहा है। यह खुलासा स्टॉकहोम के इंस्टीट्यूट फॉर सिक्योरिटी एंड डेवलपमेंट पॉलिसी (आईएसडीपी) की सोमवार को जारी एक ताजा रिपोर्ट में हुआ है।
तिब्बत और निर्वासित तिब्बत के बारे में खबरें प्रकाशित करने वाले अंग्रेजी भाषा के समाचार पोर्टल फायुल ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की है। सुरक्षा की पारिस्थितिक लागत : तिब्बत में सैन्य विकास और पर्यावरण परिवर्तन शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि तिब्बती पठार के तेजी से सैन्यीकरण ने पर्यावरणीय परिवर्तनों को जन्म दिया है और इसका असर आसपास के क्षेत्र से भी आगे तक हो रहा है।
दरअसल, तिब्बती पठार में एशिया के सबसे बड़े ग्लेशियर और पर्माफ्रॉस्ट (जमी हुई भूमि) भंडार हैं। आईएसडीपी ने चेताया है कि ये परिवर्तन दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में रहने वाली आबादी के लिए जल सुरक्षा और स्थानीय जैव विविधता दोनों को खतरे में डालते हैं। संवाद
रिपोर्ट बताती है कि 1950 के दशक की शुरुआती तैनाती से चीन की सैन्य मौजूदगी अब एक विशाल नेटवर्क बन गई है और यह उसकी रक्षा और आर्थिक रणनीति से जुड़ी है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के मुताबिक,पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने तिब्बत क्षेत्र में 70,000 से 1,20,000 सैनिक तैनात किए हैं। इनमें से लगभग 40,000 से 50,000 सैनिक अकेले तिब्बत में तैनात हैं।
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