पीच वैली ऑफ हिमाचल के नाम से प्रसिद्ध राजगढ़ क्षेत्र में आडू़ उत्पादन लगातार जा रहा सिमटता
पीच वैली ऑफ हिमाचल के नाम से प्रसिद्ध राजगढ़ क्षेत्र में आडू़ उत्पादन लगातार सिमटता जा रहा है। बढ़ते विपणन खचों की तुलना में दाम न मिलने, ग्लोबल वार्मिंग और फसल में लगने वाले रोग फाइटोप्लाज्मा के चलते बागवान आडू़ की खेती से दूर होते जा रहे

यंगवार्ता न्यूज़ - राजगढ़ 25-08-2025
पीच वैली ऑफ हिमाचल के नाम से प्रसिद्ध राजगढ़ क्षेत्र में आडू़ उत्पादन लगातार सिमटता जा रहा है। बढ़ते विपणन खचों की तुलना में दाम न मिलने, ग्लोबल वार्मिंग और फसल में लगने वाले रोग फाइटोप्लाज्मा के चलते बागवान आडू़ की खेती से दूर होते जा रहे हैं। पिछले पच्चीस साल में करीब 85 फीसदी उत्पादन कम हो गया है।
70 के दशक में भाणत निवासी स्व. लक्ष्मीचंद वर्मा ने सबसे पहले पौधे लगाए तो लोग उन्हें ताने देते थे कि उनका परिवार तो भूखा मर जाएगा। जब अच्छी आमदनी हुई तो समूचे राजगढ़ क्षेत्र ही नहीं, बल्कि जिला सिरमौर में लोग आइ के बगीचे लगाने लगे। 1972 में शुरू हुई आडू की यह यात्रा 1978 से 2000 तक बुलंदी पर पहुंची।
जिला सिरमौर में आडू के बगीचों का क्षेत्र करीब पांच हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया था। उत्पादन 7 से 8 हजार मीट्रिक टन तक पहुंच गया। इसको देखते हुए 5 मई 2005 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने राजगढ़ क्षेत्र को पीच वैली ऑफ हिमाचल घोषित किया था। वर्तमान में जिला में आडू का क्षेत्र घटकर मात्र 1250 हेक्टेयर तक सिमट चुका है। उत्पादन भी मात्र 1200 मीट्रिक टन रह गया है।
कारण आडू में लगने इसका सबसे बड़ा वाली वायरस जनित बीमारी रही, जिससे लोगों के बगीचे कुछ वर्षों में ही सूख गए। मौसम की बेरुखी व बढ़ते विपणन खर्चों ने भी बागवानों को आडू उत्पादन से विमुख किया। जिले में तीन फूड प्रोसेसिंग यूनिट धौलाकुआं, बागथन व राजगढ़ 70 के दशक में स्थापित कर दिए थे, जो अब बंद पड़े हैं।
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