यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 22-10-2025
इस वर्ष दिवाली पर्व को लेकर काफी भ्रम की स्थिति बनी रही। क्योंथल के कुछ गांव में लोगों ने अमावस्या की रात्रि होने पर अपने घरों में लक्ष्मी पूजा की गई। जबकि जिन गांव में देवता के प्राचीन मंदिर विद्यमान है वहां पर मंगलवार को देवस्थान में पांरपरिक ढंग से मक्की के टांडे का अलाव , जिसे स्थानीय भाषा में दवालठा कहा जाता है , जलाकर दिवाली मनाई गई। तदोंपरांत लोगों ने अपने घरों में दीपमाला करके और पारंपरिक व्यंजन पटाड़े और खीर बनाकर दीपों का पर्व हर्षोल्लास से मनाया गया। जबकि बीते रोज लोगों ने अस्कलियां बनाकर छोटी दिवाली मनाई।
वरिष्ठ नागरिक दौलत राम मेहता और पूर्व प्रधान दयाराम वर्मा सहित अनेक लोगों ने बताया कि क्षेत्र में दीवाली को पंचपर्व के रूप में मनाते हैं जिसमें दिवाली से दो दिन पूर्व धनतेरस को मूड़ी को त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन लोग गेंहूं, काले चने और राजमाह की मूड़ी बनाते हैं जिसे अखरोट के साथ खाया जाता है। इसी प्रकार छोटी दिवाली की रात्रि को लोग अपने घरों में अस्कलियां बनाते हैं जिसे घी, शक्कर, शहद के साथ खाते हैं। इसी प्रकार दिवाली के दिन लोग विशेष तौर पर पटांडे और खीर बनाते हैं और रात्रि को अपने घरों व स्थानीय मंदिर में दीपमाला करने के उपरांत गांव में चौपाल में अलाव जलाते है जिसे जिसमें सभी जाति के लोग शामिल होकर नृत्य करते हैं।
उन्होंने बताया कि इसके उपरांत देवालयों में घैना लगाकर जागरण किया जाता है। इस दौरान देवताओं के सम्मान में लोग अपने घरों में भूमि पर बिस्तर लगाकर सोते हैं और स्त्रियां अपने बालों को नहीं धोती है। दौलत राम मेहता ने बताया कि क्योंथल के समूचे क्षेत्र में दिवाली पर्व पर देव जुन्गा की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। कहा कि दिवाली के अगले दिन पड़वा अर्थात गोवर्धन पूजा के अवसर पर लोग अपने पशुओं को माला पहनकर उन्हें आटे की पेड़ियां देते हैं। भैया दूज को लोग देवता के नाम पर जातर निकालने का विधान है ताकि क्षेत्र में किसी महामारी का प्रकोप न होकर सुख व समृद्धि का सूत्रपात हो।