हिमाचल में स्थापित पनविद्युत परियोजनाओं को हर साल चुकाने होंगे करीब 1700 करोड़ रुपए  

हिमाचल में स्थापित पनविद्युत परियोजनाओं को हर साल करीब 1700 करोड़ रुपए बतौर भू-राजस्व राज्य सरकार को चुकाने होंगे। दो फीसदी लैंड रेवेन्यू तय होने के बाद राज्य के शिमला और धर्मशाला स्थित भू-व्यवस्था अधिकारियों ने स्पेशल असेस्मेंट रिपोर्ट जारी

Dec 13, 2025 - 16:16
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हिमाचल में स्थापित पनविद्युत परियोजनाओं को हर साल चुकाने होंगे करीब 1700 करोड़ रुपए  

यंगवार्ता न्यूज़ -  शिमला    13-12-2025

हिमाचल में स्थापित पनविद्युत परियोजनाओं को हर साल करीब 1700 करोड़ रुपए बतौर भू-राजस्व राज्य सरकार को चुकाने होंगे। दो फीसदी लैंड रेवेन्यू तय होने के बाद राज्य के शिमला और धर्मशाला स्थित भू-व्यवस्था अधिकारियों ने स्पेशल असेस्मेंट रिपोर्ट जारी कर दी है। सबसे ज्यादा बीबीएमबी को तीन प्रोजेक्टों का 436 करोड़ और एसजेवीएन को 283 करोड़ रुपए हर साल अब राज्य सरकार को देने होंगे। 

इस अधिसूचना के अनुसार यह भू-राजस्व सभी छोटी-बड़ी केवल पनविद्युत परियोजनाओं पर लगाया गया है। यहां तक कि बिजली बोर्ड और पावर कारपोरेशन के प्रोजेक्ट भी नहीं बचे हैं। अधिसूचना में कहा गया है कि प्रस्तावित राशि पर संबंधित बिजली प्रोजेक्ट 15 दिन के भीतर आपत्तियां भी दे सकेंगे। इन आपत्तियों पर गौर करने के बाद अपनी सिफारिश राज्य सरकार को भू-व्यवस्था अधिकारी भेजेंगे।

जैसे ही राज्य सरकार इस आर्डर को कन्फर्म करेगी, बिजली परियोजनाओं को वसूली के लिए नोटिस जारी हो जाएंगे। बता दें कि हिमाचल सरकार ने वाटर सेस का फार्मूला कामयाब न होने के बाद भू-राजस्व लगाने का फैसला किया था। यह उस जमीन पर लगाया गया है, जिसे गैर कृषि पर्पज के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। 

बिजली परियोजनाओं का औसत बाजार मूल्य ऊर्जा निदेशालय से तय करवाया गया है। यह लैंड रेवेन्यू पहली जनवरी, 2026 से लागू होगा। फोरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट में अनुमति लेकर ट्रांसफर की गई जमीन पर भी भू-राजस्व देना होगा, क्योंकि राजस्व विभाग ने अपने एक्ट में लीगल ऑक्यूपायर शब्द का इस्तेमाल किया है, यानी जमीन का मालिकाना हक यदि प्रोजेक्ट के पास नहीं है, तो भी लैंड रेवेन्यू देना होगा। 

ऊर्जा निदेशालय की असेस्मेंट के अनुसार कुल 188 बिजली परियोजनाओं से भू-राजस्व एकत्र किया जाएगा। हालांकि राज्य सरकार ने वर्तमान वित्त वर्ष के बजट में भी भू- राजस्व से 1018 करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन नया कानून बनाने से लेकर इसकी दर तय होने तक लगे समय के कारण अब जनवरी से ऐसे लागू किया जा रहा है।

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