प्रयागराज में शुरू हुए कल्पवास , एक कल्प का मतलब ब्रह्मा का एक दिन , क्या है कल्पवास , जिससे होती है अक्षय पुण्य की प्राप्ति
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो प्रयागराज में शुरू हुए कल्पवास में एक कल्प का पुण्य मिलता है। शास्त्रों में एक कल्प का मतलब ब्रह्मा का एक दिन बताया गया है। कल्पवास का वर्णन महाभारत और रामचरितमानस में भी है। एक माह तक संगम तट पर चलने वाले कल्पवास में कल्पवासी को जमीन पर सोना पड़ता है। इस दौरान एक समय का आहार या निराहार रहना होता है। तीन समय गंगा स्नान करने की अनिवार्य़ता भी है
न्यूज़ एजेंसी - प्रयागराज 19-01-2025
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो प्रयागराज में शुरू हुए कल्पवास में एक कल्प का पुण्य मिलता है। शास्त्रों में एक कल्प का मतलब ब्रह्मा का एक दिन बताया गया है। कल्पवास का वर्णन महाभारत और रामचरितमानस में भी है। एक माह तक संगम तट पर चलने वाले कल्पवास में कल्पवासी को जमीन पर सोना पड़ता है। इस दौरान एक समय का आहार या निराहार रहना होता है। तीन समय गंगा स्नान करने की अनिवार्य़ता भी है।
क्या है अर्धकुंभ और कल्पवास की परंपरा
अर्धकुंभ और कल्पवास की परंपरा केवल प्रयागराज और हरिद्वार में ही है। इतिहासकारों के अनुसार कुंभ मेले का पहला विवरण मुगल काल के 1665 में लिखे गए गजट खुलासातु-त-तारीख में मिलता है। कुछ इतिहासकार इस तथ्य को विवादित करार देते हैं, वे पुराणों और वेदों का हवाला देकर कुंभ मेले को सदियों पुराना मानते हैं। बहरहाल इतिहासकार यह भी मानते हैं कि 19वीं शताब्दी में बारह बरस में मिलने वाले धर्माचार्यों को जब लगा कि उन्हें बीच में भी एक बार एकत्र होना चाहिए तो छह बरस पर अर्ध कुंभ की परंपरा की नींव पड़ी।
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