सोलन में शुरू हुआ दो दिवसीय राष्ट्रीय मशरूम सम्मेलन , देशभर के करीब 150 वैज्ञानिक, शोधार्थी करेंगे मंथन 

आईसीएआर के सोलन स्थित खुंब अनुसंधान निदेशालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय मशरूम सम्मेलन-2025 वीरवार को शुरू हुआ। राष्ट्रीय मशरूम सम्मेलन का शुभारंभ डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर (बिहार) के कुलाधिपति डॉ. पीएल गौतम ने किया। मशरूम सोसाइटी ऑफ़ इंडिया और आईसीएआर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस सम्मेलन में देशभर के करीब 150 वैज्ञानिक, शोधार्थी व उन्नत मशरूम उत्पादक भाग ले रहे हैं

Aug 7, 2025 - 18:36
Aug 7, 2025 - 18:50
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सोलन में शुरू हुआ दो दिवसीय राष्ट्रीय मशरूम सम्मेलन , देशभर के करीब 150 वैज्ञानिक, शोधार्थी करेंगे मंथन 

यंगवार्ता न्यूज़ - सोलन  07-08-2025
आईसीएआर के सोलन स्थित खुंब अनुसंधान निदेशालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय मशरूम सम्मेलन-2025 वीरवार को शुरू हुआ। राष्ट्रीय मशरूम सम्मेलन का शुभारंभ डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर (बिहार) के कुलाधिपति डॉ. पीएल गौतम ने किया। मशरूम सोसाइटी ऑफ़ इंडिया और आईसीएआर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस सम्मेलन में देशभर के करीब 150 वैज्ञानिक, शोधार्थी व उन्नत मशरूम उत्पादक भाग ले रहे हैं। देश में हरित क्रांति के जनक भारत रत्न प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन के शताब्दी वर्ष पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि भी अर्पित की गई। इस सम्मेलन  के उद्घाटन अवसर पर बोलते हुए डॉ. पीएल गौतम ने कहा कि मशरूम की रोग-रोधी किस्में विकसित करनी चाहिए। साथ ही स्थानीय पोषाधार का उपयोग कर कम लागत में अधिक उत्पादन करना और कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी एवं मूल्य संवर्धन पर ध्यान देना आवश्यक है। 
उन्होंने यह भी कहा कि मशरूम के नियमित सेवन से न केवल कुपोषण की समस्या से निपटा जा सकता है, बल्कि कई बीमारियों से भी सुरक्षा मिल सकती है। डॉ. गौतम ने मशरूम को दैनिक आहार का अभिन्न हिस्सा बताते हुए इसकी जैव विविधता के संरक्षण पर ज़ोर दिया। एएसआरबी के पूर्व सदस्य डॉ. पी. के. चक्रवर्ती ने रसायनों के सीमित और सुरक्षित उपयोग पर बल देते हुए कहा कि भारत में भी अन्य देशों की तरह मशरूम उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले रसायनों की अधिकतम अवशेष सीमा निर्धारित की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि कंपोस्ट के इस्तेमाल में भी सावधानी बरतनी चाहिए। इससे मशरूम में पेस्टीसाइड के अवशेष आ जाते हैं। उन्होंने इस बात पर जो दिया कि मशरूम में लैड की मात्रा को कम किए जाने की दिशा में काम होना चाहिए। आईसीएआर के पूर्व डीडीजी (सीएस) डॉ. तिलक राज शर्मा ने  मशरूम को अनसंग हीरोज ऑफ इकोनॉमी बताया। 
उन्होंने कहा कि यह कम लागत में अधिक फायदा देने वाली फसल है। डॉ. शर्मा ने चक्रीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा बताते हुए इसके उत्पादन में स्थानीय कृषि अवशेषों के उपयोग, लागत में कमी, और बेहतर ब्रांडिंग एवं पैकेजिंग पर जोर दिया। डॉ. शर्मा ने कहा कि दुनिया का 96 फीसदी मशरूम एशिया में होता है,जबकि 94 फीसदी मशरूम अकेले चाइना कर रहा है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में 12 महीने मशरूम की खेती की जा सकती है। डॉ. यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी नौणी के वाइस चांसलर प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने मशरूम को विटामिन डी का उत्कृष्ट स्रोत बताते हुए इसे दैनिक आहार में शामिल करने की सलाह दी। उन्होंने देश में मौजूद कृषि अवशेषों के अधिकाधिक उपयोग की आवश्यकता पर भी बल दिया। 
डॉ. चंदेल ने कहा कि हिमाचल में 90 फीसदी लोगों में विटामिन डी की कमी है। हिमालयन स्टेट में यूरिक एसिड के मामले बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय खुम्ब अनुसंधान निदेशालय (डीएमआर) सोलन के निदेशक डॉ. वेद प्रकाश शर्मा द्वारा अतिथियों के स्वागत किया और साथ ही मशरूम पर हुए नवीनतम अनुसंधानों और मशरूम सोसाइटी द्वारा आयोजित विविध गतिविधियों की जानकारी साझा की गई।  उद्घाटन सत्र का संचालन वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनुराधा श्रीवास्तव ने किया, जबकि अंत में धन्यवाद ज्ञापन सोसाइटी के सचिव डॉ. अनिल कुमार द्वारा किया गया। इस मौके पर डीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बीएल अत्री, डॉ. श्वेत कमल समेत अन्य मौजूद रहे।

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