यंगवार्ता न्यूज़ - हमीरपुर 24-01-2025
कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ. शशिपाल अत्री ने जिला के किसानों को गेहूं की फसल को पीले रतुआ रोग से बचाने के लिए एहतियाती कदम उठाने की अपील की है। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में गेहूं की फसल में बीते कई सालों के दौरान पीले रतुआ रोग का संक्रमण देखा गया है। इससे गेहूं की पैदावार में कमी देखने को मिलती है। पीले रतुआ को कई इलाकों में धारीदार रतुआ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बताया कि इसका प्रकोप दिसंबर के मध्य और जनवरी के बीच दिखाई देता है।
ठंड तथा अधिक नमी के मौसम में इसकी ज्यादा आशंका रहती है। यह रोग पत्तों पर छोटे-छोटे पीले फफोलों के रूप में कतारों में शिराओं के मध्य प्रकट होता है। इस रोग का प्रकोप अधिक होने पर पौधे को हाथों से छूने पर धारियों से फफूंद के बीजाणू पीले रंग के पाउडर की भांति हाथों पर लगते हैं। प्रभावित खेत में थोड़ा चलने पर कपड़ों पर पीले दाग भी लग जाते हैं। उपनिदेशक ने बताया कि मार्च के अंत तक पीली धारियां काली धारियों में बदल जाती हैं। फसल में अधिक प्रकोप होने पर यह रोग तने और बालियों तक फैल जाता है। यह रोग पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया को प्रभावित करता है तथा गेहंू की पत्तियां समय से पहले सूख जाती हैं और दाने सिकुड़़ जाते हैं।
इस रोग के प्रबंधन के लिए कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र हमीरपुर ने किसानों को इस रोग के लक्षण दिखते ही खेत में फफूंदनाशक दवाई प्रोपिकोनाजोल 25-ईसी का छिड़काव करने की सलाह दी है। एक मी.ली. फफूंदनाशक प्रति लीटर पानी में घोल कर 30 लीटर घोल प्रति कनाल की दर से खेतों में छिड़काव करें। रोग के फैलने पर हर 15 से 20 दिनों में अंतराल पर छिड़काव दोहराएं। उपनिदेशक ने कहा कि किसान खेतों का समय-समय पर निरीक्षण करें। धूप की कमी, ठंड तथा अधिक नमी की परिस्थितियों में इस रोग की अधिक आशंका रहती है। उन्होंने बताया कि बुवाई के लिए गेहूं की रोग प्रतिरोधी किस्में जैसे एचपीडब्ल्यू 360 , एचपीडब्ल्यू 368 , एचपीडब्ल्यू 373 और एचडी 3086 का प्रयोग किया जाना चाहिए और अगली बुवाई के लिए रोग ग्रसित खेतों से बीज नहीं रखना चाहिए।