सेला पर्व 2025 का भव्य समापन: हिमाचल की शिवालिक पहाड़ियों में गूंजी वन गुज्जरों की पर्यावरणीय चेतना
वन गुज्जर समुदाय का पारंपरिक सेला पर्व 20 जुलाई 2025 से उत्तराखंड के भुढाखत्ता (हल्द्वानी, नैनीताल) से आरंभ हुआ था। 31 जुलाई को हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले की पौंटा तहसील के घुत्तनपुर गाँव में गुज्जर ट्राईबल युवा संगठन हिमाचल प्रदेश के साथी , लियाकत अली आलम सैफ वजीर अली,रजीना,जुबेदा आदी ने वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजन के साथ इसका भव्य समापन किया

न्यूज़ एजेंसी -उत्तराखंड 01-08-2025
वन गुज्जर समुदाय का पारंपरिक सेला पर्व 20 जुलाई 2025 से उत्तराखंड के भुढाखत्ता (हल्द्वानी, नैनीताल) से आरंभ हुआ था। 31 जुलाई को हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले की पौंटा तहसील के घुत्तनपुर गाँव में गुज्जर ट्राईबल युवा संगठन हिमाचल प्रदेश के साथी , लियाकत अली आलम सैफ वजीर अली,रजीना,जुबेदा आदी ने वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजन के साथ इसका भव्य समापन किया।
इस अवसर पर पौंटा तहसीलदार और स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों की उपस्थिति रही, जिन्होंने समुदाय के साथ मिलकर इस ऐतिहासिक पहल को सम्मानित किया। 12 दिवसीय सेला पर्व अभियान में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के हरिद्वार, पौड़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, देहरादून, बिजनौर, सहारनपुर जैसे अनेक क्षेत्रों में वृक्षारोपण करते हुए पर्व को जनांदोलन का रूप दिया गया।
शिवालिक की पहाड़ियों से लेकर हिमालयी बुग्यालों और तराई-भाभर क्षेत्रों तक, हजारों प्राकृतिक पौधों को रोपकर वन गुज्जर समाज ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी गहरी आस्था और संकल्प को साकार किया।
इस वर्ष के सेला पर्व को उत्तराखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण समेत विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। विशेष रूप से उत्तराखंड में स्थानीय प्रशासन और विधिक संस्थानों का साथ, वनाश्रित युवाओं को आत्मबल और नई दिशा देने वाला सिद्ध हुआ।
वन गुज्जर ट्राईबल युवा संगठन के संस्थापक अमीर हमजा ने इस अभियान से जुड़े प्रत्येक साथी का हृदय से आभार व्यक्त किया है। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि समुदाय की सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व का जीवंत प्रतीक है।
भविष्य में संगठन का लक्ष्य समुदाय की पारंपरिक पर्यावरणीय ज्ञान, वन6 संरक्षण पद्धतियों और सांस्कृतिक विशेषताओं को व्यापक स्तर पर सामने लाना है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस परंपरा को न सिर्फ समझें, बल्कि गर्व से अपनाएं।
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