नहीं रहे सोलन के वयोवृद्ध देश के जाने-माने संस्कृत विद्वान प्रो. मनसाराम शर्मा

 संस्कृत के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर मनसा राम शर्मा अरुण का निधन हो गया। वे 95  वर्ष के थे। प्रो. शर्मा पिछले लंबे समय से बीमार चल रहे थे। सोलन के कोटलानाला स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका जन्म 16 मार्च 1930 को हिमाचल के बिलासपुर जिला में हुआ था। संस्कृत जगत व उनके आत्मीय जनों के लिए यह अपूर्णीय क्षति है। बनारस व पंजाब यूनिवर्सिटी से शिक्षित प्रो. शर्मा का संपूर्ण जीवन संस्कृत को समर्पित रहा। हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में साढ़े तीन दशकों तक उन्होंने स्कूल व कॉलेज में देववाणी संस्कृत की सेवा की

Jul 15, 2024 - 19:43
 0  17
नहीं रहे सोलन के वयोवृद्ध देश के जाने-माने संस्कृत विद्वान प्रो. मनसाराम शर्मा

 यंगवार्ता न्यूज़ - सोलन  15-07-2024

संस्कृत के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर मनसा राम शर्मा अरुण का निधन हो गया। वे 95  वर्ष के थे। प्रो. शर्मा पिछले लंबे समय से बीमार चल रहे थे। सोलन के कोटलानाला स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका जन्म 16 मार्च 1930 को हिमाचल के बिलासपुर जिला में हुआ था। संस्कृत जगत व उनके आत्मीय जनों के लिए यह अपूर्णीय क्षति है। बनारस व पंजाब यूनिवर्सिटी से शिक्षित प्रो. शर्मा का संपूर्ण जीवन संस्कृत को समर्पित रहा। हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में साढ़े तीन दशकों तक उन्होंने स्कूल व कॉलेज में देववाणी संस्कृत की सेवा की। प्रो. शर्मा शायद देश के अंतिम व्यक्ति होंगे , जिन्होंने संस्कृत का हस्तलिखित अखबार भी चलाया। उनके निधन पर सोलन के संस्कृत जगत ने शोक जताया और शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की।  
संस्कृत विद्वान डॉ. प्रेम लाल गौतम, डॉ. शंकर वासिष्ठ, मदन हिमाचली समेत दर्जनों संस्कृत प्रेमियों ने उनके निधन को कभी न पूरी होने वाली क्षति  बताया। वर्ष 1953 से प्रो. मनसा राम शर्मा दैनिक , साप्ताहिक, मासिक हस्तलिखित संस्कृत पत्रिकाएं चलाते रहे। उन्होंने शिक्षा भगवत गीता , प्रिया गीता , वार्षिकी गीता , बाल गीता , सुगीता ये पांच पुस्तकें गीता ज्ञान के साथ संस्कृत प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से प्रकाशित की। हिमांशु , समभद्रा ,ऋतंभरा पत्रिकाओं का और शिशु शब्दकोश का संपादन किया। उनके प्रदेश व देश भर की पत्र-पत्रिकाओं में शोख लेख प्रकाशित होते रहे। देवांगन (सामाजिक उपन्यास) प्रथम संस्करण 1967, सदियां रे मोड (पहाड़ी, लघु व वीर महाकाव्य ) प्रथम संस्करण 1972 , युग बंधु ( किशोर संस्कृत महाकाव्य) प्रथम संस्करण 1989 , भाषा , गणना भूगोल रीति 1985 , स्तरीकृत प्रथम पद कोष 1989 , पंचाध्यायी व्याकरण 1990 , भवानी शिला (नवीन संस्कृत कथा अष्टकम )1992 , शताब्दियों के मोड ( राष्ट्र भाषा हिन्दी साहित्य की एक अभिनव काव्य विधा) मार्च 2011। 
प्रो. मनसाराम शर्मा संस्कृत के जाने-माने विद्वान थे। उन्होंने उच्च शिक्षा विभाग में संस्कृत प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दी। इस दौरान एससीईआरटी सोलन में संस्कृत भाषा के प्रोफेसर के रूप में वर्षों तक अपनी सेवाएं दी। संस्कृत भाषा के लिए अंतिम सांस तक भी उनका जोश कम नहीं हुआ। संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए वह निरंतर कार्य करते हैं। सोलन में वह 85 वर्ष की आयु तक संस्कृत का हस्तलिखित समाचार पत्र चलाते रहे हैं अब वह अपना समय धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने में व्यतीत करते थे। जब तक वह चल सकते थे प्रतिवर्ष सोलन में संस्कृत भाषा में मेरिट में आने वाले छात्रों को अपनी मासिक पेंशन छात्रवृत्तियां देते रहे। सोलन में वह 65 से 70 कार्यक्रम अपने खर्चे पर आयोजित कर यहां संस्कृत के मेधावी छात्रों को सम्मानित कर चुके हैं। यह उनकी संस्कृत के प्रति उदारता है।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow