प्रदेश में आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील ग्लेशियरों की अब सेंसर, फ्लो मीटर और कैमरों से होगी निगरानी  

हिमाचल प्रदेश में आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील ग्लेशियरों की निगरानी अब सेंसर, फ्लो मीटर और कैमरों से होगी। तकनीक के इस्तेमाल से पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की जाएगी, जिससे बाढ़ जैसी आपदाओं की अग्रिम जानकारी मिल सकेगी

Jul 9, 2025 - 13:43
Jul 9, 2025 - 13:56
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प्रदेश में आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील ग्लेशियरों की अब सेंसर, फ्लो मीटर और कैमरों से होगी निगरानी  

यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला     09-07-2025

हिमाचल प्रदेश में आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील ग्लेशियरों की निगरानी अब सेंसर, फ्लो मीटर और कैमरों से होगी। तकनीक के इस्तेमाल से पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की जाएगी, जिससे बाढ़ जैसी आपदाओं की अग्रिम जानकारी मिल सकेगी। तेजी से पिघलते ग्लेशियरों के कारण हिमाचल में 650 झीलें बन गई हैं। 

राज्य सरकार ने जलवायु परिवर्तन के कारण पिघल रहे ग्लेशियरों का अध्ययन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्राॅपिकल मेट्रोलॉजी पुणे (आईआईटीएम) से करवाने का फैसला लिया है। प्रदेश में साल दर साल बढ़ रही बादल फटने की घटनाओं की भी यह संस्थान जांच करेगा।

सेंसर की मदद से ग्लेशियरों के तापमान, आर्द्रता, बर्फ की गहराई को मापा जाएगा। फ्लो मीटर की मदद से नदियों और ग्लेशियरों से निकलने वाले पानी की मात्रा को मापा जाएगा, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने की दर का सटीक आकलन किया जा सके। कैमरों की मदद से समय-समय पर ग्लेशियरों की तस्वीरें ली जाएंगी। इससे इनके आकार-संरचना में होने वाले बदलाव को ट्रैक किया जाएगा। 

ग्लेशियरों के पिघलने से उत्पन्न होने वाली संभावित बाढ़ जैसी आपदाओं के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली भी विकसित होगी, जिससे समय रहते खतरे की जानकारी मिले। हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ते तापमान की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इससे ऊंचाई वाले इलाकों में करीब 850 छोटी-बड़ी झीलें बन चुकी हैं। 650 से ज्यादा झीलें हिमाचल के लिहाज से संवेदनशील हैं। झीलों पर विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद का सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज लगातार अध्ययन कर रहा है।

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