यंगवार्ता न्यूज़ - पांवटा साहिब 31-05-2025
चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय ने जून 2025 माह के पहले पखवाड़े में किये जाने वाले मौसम पूर्वानुमान सम्बन्ध्ति कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में मार्गदर्शिका जारी की है , जो किसानों के लिए लाभप्रद साबित होगी। जहां धान की नर्सरी की बिजाई नहीं हुई है, वहां जून के पहले सप्ताह तक नर्सरी बुवाई की जा सकती है। नर्सरी बुवाई से पहले बीज को बैविस्टिन 2.5 ग्राम / प्रति किग्रा. से उपचार कर लें। धान में खरपतवार नियन्त्रण के लिए ऑक्साडाईजोन (रोनस्टार) 3 लीटर/ हैक्टेयर या ब्यूटाक्लोर (मैचटी) 3 लीटर/ हैक्टेयर का छिड़काव 800 लीटर पानी में घोलकर बीजाई के 48 घण्टों के भीतर करें। शुष्क विधि द्वारा लगाई गई नर्सरी में खरपतवारों के नियंत्रण के लिए ब्यूटाक्लोर (मचैटी) का 1.5 लीटर/ हैक्टेयर बिजाई के 2 दिन बाद छिड़काव करें। घास प्रजाति के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बाइस्पाईरीबैक 10 ई.सी. (नोमनीगोल्ड) 200 ग्राम प्रति हैक्टेयर सीधे बीजाई व रोपाई के 25 से 30 दिन पर छिड़काव करें।
मच्च ( puddled rice ) किए गए खेत में अंकुरित बीजों द्वारा की गई सीधी बिजाई में दो दिन के बाद ब्यूटाक्लोर + सेफनर 3 लीटर / हेक्टेयर या प्रेटिलाक्लोर + सेफनर 1.5 लीटर / हेक्टेयर या 8-12 दिन के अन्दर पाइराजोसल्फयूरान ईथायल 250 ग्राम / हेक्टेयर का स्प्रे करें। अन्यथा बुवाई के 7 दिन बाद सेफनर के बिना प्रीटिलाक्लोर का प्रयोग करने से धान में खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण होता है। रोपाई वाले धान में खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के चार दिन बाद सेफनर के साथ प्रेटिलाक्लोर 800 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। श्री विधि या एसआरआई विधि (System of Rice Intensification) धान रोपाई की अनुमोदित विधि है। इसमें बीज की मात्रा कम लगती है तथा पैदावार अधिक मिलती है। अधिक कीमत वाले संकर धान ( एचआरआई -152) की खेती के लिए विशेषकर उपयोगी है। इसमें 15-18 दिन की नर्सरी की रोपाई की जाती है। रोपाई जून के दूसरे पखवाड़े में की जाती है। उखाड़े गये पनीरी की रोपाई एक घण्टे के अन्दर ही की जानी चाहिए।
कतार एवं पौधे की आपस में दूरी 20 सेमी. रखते हुए एक स्थान पर एक ही पौधा लगाया जाता है। पौध रोपाई करते समय जड़ सीधी रखें। खेत में रोपाई के बाद 2 से 3 सेंटीमीटर पानी 5 दिन तक खड़ा रहना चाहिए। मक्की की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर व पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर अन्तर रखना चाहिए। एक हैक्टेयर बिजाई के लिए 20 किलोग्राम बीज पर्याप्त है। मक्का की फसल में सभी प्रकार के खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 दिन बाद टेम्बोट्रियोन 120 ग्राम प्रति हेक्टेयर सर्फेक्टेंट के साथ का छिड़काव करें, या मक्की की फसल में खरपतवार की 2-3 पत्ती अवस्था पर टोप्रामेजोन 25.2 ग्राम प्रति हेक्टेयर + एट्राजीन 750 ग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें। प्रदेश के निचले एवं मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में अदरक , हल्दी , अरबी तथा जिमीकंद की बुवाई का उचित समय चल रहा है। बिजाई के लिए उन्नत किस्म अदरक की- हिमगिरी’ ‘सोलन गिरी गँगा’, हल्दी की पालम पीताम्बर तथा पालम लालिमा तथा अरबी की स्थानीय किस्में एवं जिमीकंद की पालम जिमीकंद-1 का चयन करें। अदरक, हल्दी व अरबी की बुवाई के लिए स्वस्थ, 30-50 ग्राम वजन व 2-3 आंखों वाले कन्दों का ही प्रयोग करें। 156 किलोग्राम इफको (12:32:16) मिश्रण खाद, 85 किलोग्राम यूरिया व 40 किलोग्राम ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश/ हेक्टेयर बुवाई के समय खेतों में डालें।
बुवाई के बाद मल्च के रूप में गोबर खाद (100 क्विंटल / हेक्टेयर) या सूखी पत्तियां (50 क्विंटल / हेक्टेयर) मिट्टी पर बिछा दें। मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में भिण्ड़ी की सुधरी प्रजातियों जैसे हिम पालम भिण्डी-1, सोलन अधिराज, पालम कोमल, पी.-8, अर्का अनामिका , संकर पंचाली की बीजाई करें। बुवाई के समय भिन्डी में 100 क्विंटल / हेक्टेयर गोबर खाद , 156 किलोग्राम इफको (12:32:16) मिश्रण खाद, 60 किलोग्राम यूरिया व 50 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा फ्रासबीन में 200 क्विंटल / हेक्टेयर गोबर खाद, 310 किलोग्राम इफको (12:32:16) मिश्रण खाद तथा 27 किलोग्राम यूरिया खाद / हेक्टेयर खेतों में डालें। भिन्डी तथा फ्रासबीन में लाइन की दूरी 45-60 तथा पौधे की दूरी 15-20 सेंटीमीटर रखें। अगेती फूलगोभी की तैयार पौध की खेतों में 45 व 30 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपाई करें तथा रोपाई से पूर्व 250 क्विंटल / हेक्टेयर गोबर की खाद, 235 किलोग्राम 12:32:16 मिश्रण खाद, 150 किलोग्राम यूरिया एवं 54 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर खेतों में डालें। प्रदेश के उंचे पर्वतीय क्षेत्रों में खेतों में लगी हुई सब्ज़ियों में निराई-गुड़ाई करें तथा नत्रजन (40-50 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हेक्टेयर) खेतों में डालें। मक्की - क्षेत्रफल एवं उपज की दृष्टि से प्रदेश की महत्वपूर्ण अनाज की फसल है।
यह फसल उत्तम चारे तथा उत्तम किस्म के साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त है। अफ्रीकन टॉल एवं देसी किस्म के बीज 50 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से केरा विधि से बुवाई करें। गुणवत्ता चारा प्राप्त करने के लिए 75 प्रतिशत अनुमोदित बीज मात्रा चरी तथा 25 प्रतिशत अनुमोदित बीज मात्रा बाजरा को मिलाकर बुवाई करें। मक्की की फसल में कटुआ कीट व सफेद सुण्डी के नियन्त्रण के लिए अच्छी गली सड़ी गोबर की खाद का उपयोग करें तथा जिन क्षेत्रों में इन कीटों की अधिक समस्या हो वहां पर बीज दर थोड़ी अधिक रखें। इन कीटों के नियन्त्रण के लिए 2 लीटर क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी. नामक दवाई को 25 किलोग्राम रेत में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बुवाई करने से पहले खेत में मिलाएं। जिन क्षेत्रों में राजमाश की बुवाई करनी हो वहां पर बुवाई से पहले राजमाश के बीज को बैविस्टीन 2.5 ग्राम/ किग्रा. बीज नामक दवाई से उपचारित करें। बीज का उपचार करने से राजमाश की फसल में बीज जनित बिमारियों से बचाव हो सकता है।
टमाटर, बैंगन व भिण्डी आदि सब्ज़ियों में फल छेदक कीटों के नियंत्रण के लिए 750 मि.ली. साइपरमेथ्रिन 10 ईसी 750 लीटर पानी में मिला कर प्रति हैक्टेयर का छिड़काव करें। कद्दूवर्गीय सब्ज़ियों में लाल भृंग नियन्त्रण के लिए मैलाथियान- 50 ई.सी. (1 मि.ली./ लीटर पानी ) तथा डाऊनी मिल्डयू एवं अन्य बीमारियों से बचाव हेतू 7-10 दिन के अन्तराल पर डाइथेन एम-45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें। किसान भाईयों एवं पशु पालकों से अनुरोध है कि अपने क्षेत्रों की भौगोलिक तथा पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक एवं अतिविशिष्ठ जानकारी हेतु नजदीक के कृषि विज्ञान केन्द्र एवं कृषि एवं उद्यान अधिकारी से सम्पर्क बनाए रखें। अधिक जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र (एटिक) 01894-230395 से भी सम्पर्क कर सकते हैं।