बुजुर्गों के अधिकारों की सुरक्षा में कानून की अहम भूमिका : न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी 

आधुनिक जीवन की भाग-दौड़, सामाजिक मुल्यों में गिरावट एवं निरंतर आते परिविर्तन और संयुक्त परिवारों का विघटन वर्तमान दौर की कुछ ऐसी घटनाएं है जिनके कारण हमारे देश का बुजुर्ग एक चौराहे पर आ खड़ा हुआ है। श्रवण कुमार जिन्होंने अपने माता-पिता की सेवा में सब कुछ न्योछावर कर दिया था, उनको आदर्श मानने वाले इस देश में अभिभावक , संतान और समाज दोनों से उपेक्षित एवं तिरस्कृत महसूस कर रहा

Apr 5, 2024 - 18:36
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बुजुर्गों के अधिकारों की सुरक्षा में कानून की अहम भूमिका : न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी 

यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला  05-04-2024

आधुनिक जीवन की भाग-दौड़, सामाजिक मुल्यों में गिरावट एवं निरंतर आते परिविर्तन और संयुक्त परिवारों का विघटन वर्तमान दौर की कुछ ऐसी घटनाएं है जिनके कारण हमारे देश का बुजुर्ग एक चौराहे पर आ खड़ा हुआ है। श्रवण कुमार जिन्होंने अपने माता-पिता की सेवा में सब कुछ न्योछावर कर दिया था, उनको आदर्श मानने वाले इस देश में अभिभावक , संतान और समाज दोनों से उपेक्षित एवं तिरस्कृत महसूस कर रहा है। बुजुर्गों को इस दयनीय स्थिति से संरक्षण प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार ने 2007 में ‘माता-पिता तथा वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण’ कानून बनाया। देश में बुजुर्गों की स्थिति में इस कानून के आने के बाद भी मसलन कोई सुधार होते नहीं दिखा। इसी वजह से दिसंबर 2018 में उच्चतम न्यायालय को केंद्र और राज्य सरकारों को ये निर्देश जारी करना पड़ा कि बुजुर्गों के हितों की सुरक्षा के लिए 2007 में बनाए गए माता पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण कानून के प्रावधानों को और सख्ती से लागू किया जाए। 
सन् 1999 में केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय वृद्धजन नीति भी वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण का संकल्प लेती है। यह नीति वरिष्ठ नागरिकों की आर्थिक एवं खाद्य सुरक्षा, शोषण एवं दुर्व्यवहार के खिलाफ सुरक्षा , स्वास्थ्य लाभ, विकास में बराबर भागीदारी, आश्रय एवं अन्य जरूरतों की बात करती है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की 2023 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वरिष्ठ नागरिकों की जनसंख्या देश की कुल आबादी के लगभग 10 प्रतिशत यानी 15 करोड़ है जो कि 2050 तक दोगुना हो जाएगी। ऐसी स्थिति में वरिष्ठजनों के अधिकारों की सुरक्षा करना देश और भारतीय समाज के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती होगा। वरिष्ठजनों के अधिकारों जैसे संवेदनशील विषय की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय पंचवर्षीय विधिक अध्ययन संस्थान, शिमला द्वारा आईसीसएसएसआर चंडीगढ़ के सहयोग से ‘वृधजन के अधिकारों की सुरक्षा: सामाजिक-कानूनी पहलू , चुनौतियां एवं समाधान’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
 संगोष्ठी में इस विषय से जुड़े विभिन्न आयामों पर चर्चा हुई एवं देशभर से आये विद्वानों ने 70 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए। शोध पत्र दो ऑफलाइन एवं दो ऑनलाइन समानांतर तकनीकी सत्रों में प्रस्तुत किए गए। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि रहे मधुसूदन विधि विश्वविद्यालय कटक, उड़ीसा के कुलपति प्रो. कमलजीत सिंह ने बताया कि जब बुजुर्गों के हितों के संरक्षण की बात करते है तो यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह बुजुर्गों का ध्यान रखें। इसके अतिरिक्त इससे जुड़े कानूनी प्रावधानों को और प्रभावी बनाने के लिए मौजूदा कानूनों में कुछ संशोधन की आवश्यकता है। वहीं समापन सत्र के मुख्य अतिथि रहे मुख्य अतिथि रहे हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी ने बताया कि बुजुर्गों के अधिकारों की सुरक्षा में कानून की अहम भूमिका है। और इसके प्रति लोगों का जागरूक होना भी आवश्यक है। 
विधिक संस्थान के निदेशक प्रो. शिवकुमार डोगरा ने संगोष्टी के सफलतापूर्वक संपन्न होने के लिए संगोष्ठी की आयोजक समिति को बधाई दी और कहा कि इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों जैसे संवेदनशील विषय को लेकर युवा पीढ़ी को जागरूक करना और इस दिशा में शोध के माध्यम से नीति निर्माण में सहयोग करना है। उन्होंने संगोष्टी के आयोजन में सहयोग के लिए आईसीएसएसआर चण्डीगढ़ एवं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला का धन्यवाद व्यक्त किया। संगोष्ठी के दौरान डॉ. संजय कौशिक आईसीएसएसआर चंडीगढ़ , प्रो. डीडी शर्मा , प्रो.धीमान , प्रो. आरती पुरी , प्रो एसके शर्मा , प्रो. डीआर भट्ट,  राजेश शर्मा , प्रो. हरमीत सिंह संधू जैसे विद्वानों ने वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। साथ ही इस दौरान वरिष्ठ नागरिकों के जीवन पर आधारित विवेक मोहन द्वारा निर्देशित एक लघु फिल्म भी दिखाई गई जिसको दर्शकों ने खूब सराहा। इस दौरान संस्थान के छात्र, सभी शिक्षक एवं अन्य कर्मचारी भी मौजूद रहे।

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