यंगवार्ता न्यूज़ - शिलाई 01-09-2023
पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ पेशेवर दायित्वों के निर्वहन की जो मिसाल हिमाचल पथ परिवहन नौगाम ( एचआरटीसी ) नाहन के चालक ने पेश की है। उसे सुनकर हर किसी का दिल पसीज गया। हुआ यूँ कि वीरवार सुबह सवारियों से भरी एचआरटीसी की बस को लेकर जब चालक कमल ठाकुर नाहन से कुहंट के लिए चले थे तो सब कुछ रोजमर्रा की तरह सामान्य था। रास्ते में घर से लगातार फोन आ रहे थे , मगर ड्राइव करते हुए फोन पर बात नहीं हो सकती थी। इसलिए कमल ठाकुर ने ददाहु पहुंचने पर बस के ठहराव के बाद वापिस घर फोन किया। फोन पर दिल को झकझोरने वाला समाचार मिला की उनके पूज्य पिता जी की अकस्मात मृत्यु हो गई है। जिसके बाद चालक कमल ठाकुर की आंखों में आंसू थे और दिल में पिता को हमेशा के लिए खो देने की अथाह पीढ़ा।
बस के परिचालक सचिन कुमार ने तुरंत निजी टैक्सी वाले को बुलाया और कमल ठाकुर को सरकारी बस वहीं छोड़कर टैक्सी से तुरंत घर जाने की बात कही। मगर सामने खड़ी निजी टैक्सी में बैठने से ठीक पहले अचानक कमल ने पीछे मुड़कर बस की तरफ देखा जो बच्चों , बुजुर्गों और महिलाओं आदि सवारियों से पूरी भरी हुई थी और परिचालक से पूछा की अब इस बस को गंतव्य तक कौन पहुंचाएगा। परिचालक ने जवाब दिया की ये सभी सवारियां किन्हीं दूसरी बसों में चली जायेगी फिलहाल इस बस के लिए चालक की व्यवस्था नहीं हो सकती है। इतना सुनने के बाद कमल ने अपने आंसू पोंछे और बोला की बस में बैठे ये सभी लोग भी किसी न मजबूरी और जरूरी काम से ही कहीं न कहीं जा रहे होंगे।
इसलिए आप सिटी बजाओ और सवारियों को बस में बिठाओ में पिता जी का अंतिम संस्कार इन लोगों को उनके गंतव्य तक पहुँचाने के बाद करूंगा। इस बात को सुनने के बाद परिचालक की आंखें भी नम हो गई और कमल की तरफ़ देखकर बोला भाई आपके परिवार वाले और रिश्तेदार घर में आपका इंतजार कर रहे होंगे , क्योंकि आप परिवार के इकलौते बेटे है इसलिए आपका जल्दी घर पहुँचना बहुत ज़रूरी है। कमल ने जवाब दिया कि शायद हमें मालूम न हो मगर इन सवारियों की मजबूरियां और पीड़ा मुझसे भी ज्यादा बड़ी हो सकती है और पिता जी ने मुझे हमेशा एक बात बड़ा ज़ोर देकर कही थी कि कमल बेटा परिस्थिति चाहे कैसी भी हो , मगर कभी भी किसी मुसाफिर को आधे रास्ते में मत छोड़ना , क्योंकि ना जाने कौन मुसाफ़िर किस परेशानी और दर्द से गुजर रहा हो।
ये किसको मालूम कि ये सुनने के बाद कंडक्टर ने भी भीगी आँखों के साथ सीटी बजाई और चालक कमल ठाकुर बस को ददाहु से 100 किलोमीटर दूर उसके गंतव्य तक पहुंचा कर वहीं से सीधा अपने पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए रोनहाट स्थित अपने घर चले पहुंचा। इसी बस में सवार एक व्यक्ति बड़े गौर से चालक और परिचालक की सभी बातचीत को सुन रहा था और मन ही मन पूरे रास्ते भर ये सोच रहा था कि अगर वो चालक की जगह होता तो शायद इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाता। वो माता-पिता कितने महान और उच्च आदर्शों वाले होंगे जिन्होंने ऐसे संस्कारी और परोपकारी बेटे को जन्म दिया है।