यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 25-09-2024
शिमला की संजौली मस्जिद का विवाद धीरे-धीरे हल हो रहा था कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के दिल्ली के अध्यक्ष शोएब जमई ने मस्जिद के विवादित ढांचे का दौरा कर इसे नया ट्विस्ट दे दिया है। शोएब जमई का यह दौरा शिमला पुलिस या प्रशासन की अनुमति से हुआ या नहीं? यह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर इस दौरे का एक वीडियो डाला है। वीडियो में शोएब जमई संजौली के अन्य निजी भवनों की तुलना मस्जिद की ऊंचाई से कर रहे हैं और यह कह रहे हैं कि जब बगल के भवन इतने ऊंचे बन गए तो मस्जिद कैसे अवैध हो सकती है?
वक्फ बोर्ड के स्टैंड के बिल्कुल विपरीत वह कह रहे हैं कि इस बारे में वह हाई कोर्ट में जनहित याचिका डालेंगे, क्योंकि लीगल और इलिगल का पैमाना कोर्ट ही तय करेगा। नगर निगम ने जो 7000 अवैध भवन चिन्हित कर रखे हैं, फिर उनके लिए भी मस्जिद की तरह का ही फैसला हो। इस वीडियो में शोएब जमई कह रहे हैं कि हिमाचल में मुस्लिम समुदाय की आबादी कम है। यहां अपना सपोर्ट सिस्टम नहीं है, इसीलिए हम सपोर्ट करने आए हैं। जिस तरह से हिमाचल में मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है, उससे दिलों में बेचैनी थी। हम वक्फ बोर्ड से इस बारे में बात करेंगे। दूसरी तरफ से इस वीडियो को देखने के बाद हिंदू जागरण मंच ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
मंच के नेता कमल गौतम ने कहा कि शिमला पुलिस को जवाब देना चाहिए कि जब प्रदर्शनकारियों को विवादित स्थान तक नहीं जाने दिया गया, तो इस व्यक्ति को किसने अनुमति दी? उन्होंने आशंका जताई कि यह सिर्फ अल-तकिया चल रहा है। एक तरफ नगर निगम कमिश्नर के पास अवैध ढांचा गिराने की सहमति दी जा रही है और दूसरी तरफ विवादित लोगों को बुलाकर मसले को उलझाया जा रहा है। हिंदू जागरण मंच ने मस्जिद के अंदर पिलर के साइज को लेकर भी सवाल उठाए हैं। क्या सामान्य भवन के लिए ऐसे पिलर लगाए जाते हैं? गौरतलब है कि सारे विवाद में जिला प्रशासन का पक्ष अभी तक सामने नहीं आया है। शोएब जमई ने एक और पोस्ट में लिखा, '1940 और 1960 के सरकारी दस्तावेज में (वक्फ) मस्जिद का सुबूत। 100 साल पुरानी मस्जिद की जर्जर हालत होने के बाद दोबारा से बनाया गया था।
यह शिमला संजौली मस्जिद का कानूनी दस्तावेज है जिसे मैंने जनहित याचिका के उद्देश्य से मस्जिद समिति से प्राप्त किया है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि यह मूल रूप से 1940 (1914) में अहले इस्लाम मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी (वक्फ द्वारा पंजीकृत) के लिए वक्फ थी और 1960 के भूमि पंजीकरण अधिनियम (खसरा-खतौनी) में (अहले इस्लाम) वक्फ संपत्तियों के तहत इसका दस्तावेजीकरण भी किया गया है। पहले इसे एकीकृत पंजाब वक्फ बोर्ड द्वारा प्रशासित किया जाता था। बाद में कानून के अनुसार अलग हिमाचल प्रदेश वक्फ बोर्ड का गठन किया गया। फिर कांग्रेस के मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा में झूठ क्यों बोला कि मस्जिद की जमीन सरकारी संपत्ति है? क्या कांग्रेस हाईकमान इस मंत्री पर गलत सूचना फैलाने के लिए कार्रवाई करेगा?