न्यूज़ एजेंसी - नई दिल्ली 23-07-2023
राफेल सबसे तेज स्पीड वाला फाइटर जेट है , जिसको लेकर भारत में काफी विवाद भी रहा। राफेल शब्द का मतलब होता है हवा का झोंका। फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन इसकी मैन्युफैक्चरर है। यह कंपनी दुनिया की बड़ी एविएशन कंपनियों में से एक है। इसका मार्केट कैप 1. 26 लाख करोड़ रुपए है। कंपनी 90 देशों में 10 हजार से ज्यादा फाइटर प्लेन की सप्लाई करती है। फिलहाल राफेल फाइटर प्लेन फ्रांस सहित भारत, इजिप्ट और कतर के पास है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस के दौरे पर थे। इस दौरान दोनों देशों के बीच 26 राफेल विमानों की खरीद को मंजूरी दी गई। इस वजह से कंपनी फिर से चर्चा में है। साल 1914, पहला विश्व युद्ध चल रहा था। मार्सेल बलोच नाम का 22 साल का लड़का तब एयरोनॉटिक इंजीनियरिंग का ट्रेनिंग ले रहा था। इतनी कम उम्र में एयरोनॉटिक इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग लेना तब आम बात नहीं थी।
युद्ध के समय फ्रांस देश के युवाओं को मोर्चे पर भेज रहा था, लेकिन मार्सेल अपनी उम्र के लड़कों से अलग थे। इसलिए उन्हें चैलाइस मेडोन एयरोनॉटिकल रिसर्च लेबोरेटरी में भेजा गया। यहां युद्ध के लिए बनाए जाने वाले विमानों की बारीकी सीखी। उन्होंने यह भी महसूस किया कि अब तक इस्तेमाल किए जा रहे विमानों के पंखों की परफॉर्मेंस औसत दर्जे की थी। ऐसे में 1916 में उन्होंने खुद एक विमान के पंख यानी प्रोपेलर्स को डिजाइन करने की ठानी। उन्होंने विमान का नया पंख डिजाइन किया और नाम रखा एक्लेयर। यह लैब के टेस्ट में भी पास हो गया। फ्रांस की आर्म्ड फोर्स ने शुरुआत में इसके 50 यूनिट ऑर्डर किए। इसके बाद मार्सेल बलोच ने अपने एक साथी हेनरी पोटेज को साथ आने के लिए कहा। बलोच ने सोसाइटी डेस हेलिसेस एक्लेयर नाम की एक कंपनी शुरू की और हेनरी को कंपनी का डायरेक्टर बनाया। 1929 में बलोच ने एक और सोसाइटी डेस एवियंस मार्सेल बलोच की स्थापना की , जो आगे चलकर सोसाइटी एयरोनॉटिक डू सूद-ऑएस्ट हो गया। 1936 में फ्रांस में हथियार उद्योग का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इसमें मार्सेल की कंपनी का भी राष्ट्रीयकरण हो गया।
1936 में ही मार्सेल ने एक दूसरी कंपनी शुरू की, जो बाद में जाकर दसॉल्ट एविएशन बनी। जब फ्रांस में एविएशन इंडस्ट्री का राष्ट्रीयकरण हुआ, तब फ्रांस के एविएशन मिनिस्टर के पास ऐसा कोई काबिल इंसान नहीं था। ऐसे में मिनिस्टर ने बलोच को इस काम की जिम्मेदारी दी। मार्सेल बलोच को मिनिस्टर ऑफ एयर के एडमिनिस्ट्रेटिव रिप्रेजेंटेटिव का काम दिया गया। बलोच को अपनी फैक्ट्री और वर्कशॉप चलाने की भी पूरी छूट दी गई, लेकिन 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ और नाजी जर्मनी ने फ्रांस पर कब्जा कर लिया। इससे फ्रांस का एविएशन सेक्टर पूरी तरह बर्बाद हो गया। 1940 में बलोच को कैद कर लिया गया। उन्हें डिटेंशन सेंटर में डाल दिया गया। और 11 अप्रैल 1945 तक फ्रांस के आजाद होने तक वे कैद रहे। कैद से छूटने के बाद बलोच डेस एविओनस मार्सेल बलोच के चेयरमैन बने। दूसरे विश्व युद्ध के बाद मार्सेल के परिवार ने अपना नाम बदल लिया। 1946 में मार्सेल बलोच ने अपना नाम बलोच दसॉल्ट कर लिया। दूसरे विश्व युद्ध के बाद इस कंपनी ने फ्रांस में पहला जेट बनाया। दसॉल्ट ने 1953 में पहली बार भारत को तूफानी बमवर्षक विमान डिलीवर किया था।
तब जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। भारत ने तब 113 विमान खरीदे थे। तब भारत दसॉल्ट का पहला विदेशी कस्टमर भी बना था। भारत ने तूफानी का इस्तेमाल 1961 में दीव द्वीप को पुर्तगाल से आजाद कराने के लिए किया था। 1962 में असम और नागालैंड में उग्रवादियों के खिलाफ तूफानी का इस्तेमाल किया था। 1962 में चीन युद्ध में भी यह भारत के काम आया। 1962 में भारत ने दसॉल्ट से सबमरीन एयरक्राफ्ट एलीज भी खरीदे थे। 1978 में भारत ने फ्रांस से 40 रेडी टू फ्लाई जगुआर विमान खरीदे। 120 जगुआर का भारत में प्रोडक्शन किया गया। 1982 में भारत ने 49 मिराज 2000 विमानों का सौदा किया। इस विमान का कारगिल की लड़ाई में अहम योगदान रहा।
26 फरवरी 2019 को बालाकोट में आतंकियों के ठिकानों को नष्ट करने में भी यही विमान इस्तेमाल किए गए। 1970 के दशक में फ्रांस एयरफोर्स और नेवी पुराने एयरक्राफ्ट फ्लीट को रिप्लेस करना चाहती थी। इसके लिए फ्रांस की सरकार ने यूके, इटली, जर्मनी और स्पेन के साथ फाइटर एयरक्राफ्ट बनाने का करार किया, लेकिन काम को लेकर इन देशों के बीच तालमेल न बैठ पाने पर समझौता सफल नहीं हो पाया। फ्रांस ने खुद का डेवलपमेंट प्रोग्राम शुरू किया। इसके तहत 1986 में दसॉल्ट एविएशन ने पहला फाइटर जेट टेस्ट किया। इसी फाइटर जेट का आगे नाम पड़ा राफेल। राफेल को पूरी तरह फ्रांस ने बनाया था। तब इसे बनाने में फ्रांस की सभी बड़ी डिफेंस कंपनियों ने योगदान दिया था।