अंको की प्रतिशतता का संघर्ष बनकर रह गई स्कूली शिक्षा , उबाऊ शिक्षण प्रक्रिया के चलते विज्ञान से दूर हो रहे छात्र 

हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा भले ही दावे किए जाते हैं कि स्कूलों में बेहतर शिक्षा प्रदान की जा रही है , लेकिन हकीकत इसके एकदम विपरीत है। आलम यह है कि आज स्कूली शिक्षा अंकों की प्रतिशतता का संघर्ष बनकर रह गई है। यदि हिमाचल प्रदेश में विद्यालयों में शिक्षा एवं शिक्षण को रुचिकर एवं सरल बनाने की विषय का प्रयास की बात करें तो स्कूलों द्वारा इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा

Sep 6, 2024 - 19:49
Sep 6, 2024 - 20:09
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अंको की प्रतिशतता का संघर्ष बनकर रह गई स्कूली शिक्षा , उबाऊ शिक्षण प्रक्रिया के चलते विज्ञान से दूर हो रहे छात्र 
यंगवार्ता न्यूज़ - नाहन  06-09-2024
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा भले ही दावे किए जाते हैं कि स्कूलों में बेहतर शिक्षा प्रदान की जा रही है , लेकिन हकीकत इसके एकदम विपरीत है। आलम यह है कि आज स्कूली शिक्षा अंकों की प्रतिशतता का संघर्ष बनकर रह गई है। यदि हिमाचल प्रदेश में विद्यालयों में शिक्षा एवं शिक्षण को रुचिकर एवं सरल बनाने की विषय का प्रयास की बात करें तो स्कूलों द्वारा इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है , लेकिन जिला सिरमौर में एक शिक्षक ऐसे भी है जो अंको की प्रतिशतता के साथ-साथ छात्रों को उबाव प्रक्रिया से बाहर निकाल कर शिक्षा प्रणाली को रूचि कर बना रहे हैं। जिला सिरमौर के वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला टोकियो में कार्यरत डॉ. संजीव अत्री जहां छात्रों को विज्ञान की शिक्षा देते हैं , वहीं स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को उबाऊ शिक्षक प्रक्रिया से बाहर निकालकर विज्ञान के साथ-साथ अन्य क्षेत्र में भी छात्रों को जोड़ रहे हैं। विद्यालयों में शिक्षण प्रक्रिया अंकों की प्रतिशतता का संघर्ष बनकर रह गई है। 
शिक्षा को उसके उद्देश्य से दूर कर रही है। वह शिक्षण प्रक्रिया विशेष कर विद्यार्थियों को विज्ञान से दूर कर रही है। यह आवश्यक है कि शिक्षण प्रक्रियाओं में पारंपरिक परिवर्तनों के स्थान पर नवाचार को स्थान दिया जाए जो रोचकता को उत्पन्न करें। जिला सिरमौर के शिक्षक पिछले लंबे समय से कुछ ऐसा ही प्रयास करते आ रहे हैं जिसमें रंगमंच और रेडियो के साथ-साथ टोकियो स्कूल के प्रिंसिपल डॉ. संजीव अत्री शिक्षण प्रक्रिया को सिनेमा जैसे अनछुए पारंपरिक माध्यमों को शिक्षा से जोड़कर नवाचार का एक सफल प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने विज्ञान के ऐसे विषय के क्षेत्र में सिनेमा को एक सफल उपकरण तथा प्रभावी पद्धति के रूप में प्रयोग किया है। इस सफल प्रयोग के लिए उन्होंने स्वयं भी बहुत शैक्षणिक फिल्मों का निर्माण किया है। साथ ही पहले जो फिल्मों के शिक्षण कक्ष से जोड़ा है। डॉ संजीव अत्री ने अभी 16 शैक्षणिक फिल्मों की पटकथा , लेखन एवं निर्देशन किया है। इसके साथ-साथ पिछले 27 वर्षों में उन्होंने 24 शैक्षणिक फिल्म फिल्म उत्सव आयोजित किए हैं जो विज्ञान पर्यावरण एवं अन्य शैक्षणिक विषयों पर आधारित है। 
उन्होंने अंग्रेजी विषयों को सीखने के लिए फिल्मी कलाकारों तथा फिल्मों के नाम से जोड जोड वर्णमाला चार्ट भी तैयार किया है , जिससे बच्चे रुचि पूर्ण तरीके से जल्दी ही सीखते हैं।  डॉ. संजीव अत्री का मानना है कि सिनेमा के माध्यम से विद्यार्थी के लिए सीखने की बहुत ही मनोरंजक एवं रुचि पूर्ण हो जाती है। उनके इस प्रयोग को सफल बनाने हेतु उन्होंने कई विद्यालय में बाल फिल्म क्लब भी बनाए हैं जिन्हें विद्यार्थियों को शैक्षणिक सिनेमा निर्माण की तकनीक का प्रशिक्षण भी देते हैं। उनके निर्देशन में उनके विद्यालय द्वारा बनाई गई फिल्मों फिल्मों को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार भी मिले हैं। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई विद्यालयों में समय सारणी में फिल्म शो को स्थान देने के साथ-साथ विद्यालयों में लघु सिनेमा घर स्थापित करके विद्यार्थियों का नामांकन दो गुना कर दिया है। 
डॉ संजीव का कहना है कि सिनेमा को शिक्षक से जोड़कर शिक्षण प्रक्रिया से विद्यार्थियों को संख्यात्मक क्षमता में पूर्व वृद्धि होती है और रचनात्मक भी छात्रों के अंदर बढ़ती है। उन्होंने कहा कि विषय की समझ बढ़ाने के साथ-साथ आलोचनात्मक तथा विश्लेषणात्मक क्षमता में भी वृद्धि होती है। कक्षा के सामान्य समय से अधिक विषय के लिए बैठने की प्रवृत्ति भी छात्रों में बढ़ती है। डॉक्टर संजीव अत्रि ने कहा कि अपने विद्यार्थियों को सिनेमा निर्माण का प्रशिक्षण देकर सिनेमा का व्यावसायिक रूप से शिक्षा से जोड़ रहे हैं। इस समय वह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के लिए दो शैक्षणिक फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं। गौर हॉकी हिमाचल प्रदेश का पहला शैक्षणिक कैंपस रेडियो हेलो मोगीनंद भी डॉक्टर संजीव अत्री ने ही आरंभ किया था। डॉ. अत्री वर्तमान में राष्ट्रीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला टोक्यो में बात और प्रिंसिपल कार्यरत है। 

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