HPU के प्रोफेसर कुंभ पर लिख चुके है पांच पुस्तकें, उनसे जानिए क्या है कुंभ का महत्व
महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है. सनातन धर्म में महाकुंभ को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. क्योंकि, यह योग 144 वर्षों के बाद बनता है. कुंभ 3 प्रकार के होते है, जिनमें अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ शामिल
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 15-01-2025
महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है. सनातन धर्म में महाकुंभ को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. क्योंकि, यह योग 144 वर्षों के बाद बनता है. कुंभ 3 प्रकार के होते है, जिनमें अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ शामिल है. अर्धकुंभ हर 6 साल बाद मनाया जाता है. वहीं, पूर्ण कुंभ 12 वर्षों के बाद और महाकुंभ 12 पूर्ण कुंभ पूरे होने के बाद यानी 144 वर्षों के बाद मनाया जाता है।
13 जनवरी 2025 से महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है. हाल ही में कुंभ पर हिमाचल प्रदेश विश्विद्यालय के प्रोफेसर डॉ. विवेकानंद तिवारी की 5 पुस्तकें प्रकाशित हुई है. उन्होंने इस पुस्तक में कुंभ को लेकर विभिन्न पहलुओं को लोगों के सामने रखने का प्रयास किया है।
डॉ. विवेकानंद तिवारी ने बताया कि कुंभ की ख्याति विश्व के प्राचीनतम, विशालतम और वैज्ञानिक महापर्व के रूप में है. कुंभ सामाजिक समरसता का सबसे बड़ा पर्व है. कुंभ के आयोजन का मुख्य उद्देश्य सामूहिक चिंतन था. प्राचीन काल से ऋषि, महर्षि और धर्म ऋषि एक ही स्थान पर एक विशेष समय पर उपस्थित हो कर समाज, राष्ट्र और प्रकृति की समस्याओं पर सामूहिक चिंतन करते थे।
इस चिंतन से जो निष्कर्ष निकलता था, उससे परिवार, समाज, राष्ट्र और प्रकृति लाभान्वित होती थी. डॉ. तिवारी ने बताया कि कुंभ का आयोजन चार स्थानों पर होता है. प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर, हरिद्वार में गंगा के तट पर, उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर और नासिक में गोदावरी नदी के तट पर कुंभ का आयोजन होता है।
इन क्षेत्रों पर कुंभ के आयोजन का मुख्य निर्धारण ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है. इन चारों स्थान के निर्धारण का मुख्य आधार बृहस्पति, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी और वरुण देवता है।
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