सपने दिखाते नहीं , सपने बुनते थे हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार 

वह कोई एक अकेली शख्सियत नहीं, बान्क संपूर्ण इतिहास था , जिसके आईने में भविष्य का अक्स साफ दिखाई पड़ता था ! पर्वत की तरह अटल, गंगा की भांति निर्मल, मोम की तरह कोमल व सागर की भांति शांत , भीतर ही भीतर भविष्य की थाह लेना। वह आज के राजनेताओं की भांति सपने दिखाते नहीं , बल्कि सपने बुनते थे। यही कारण है कि उनके द्वारा बुने गए सपनों के तार आज तक नहीं टूटे है ! आज वे होते तो एक शताब्दी का सफर पार कर चुके होते , मगर नियति के आगे भला किसकी चली है। संसार में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें भुला पाना बड़ा मुश्किल होता है

Aug 3, 2025 - 19:48
 0  24
सपने दिखाते नहीं , सपने बुनते थे हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार 
रमेश पहाड़िया - नाहन  03-04-2025


वह कोई एक अकेली शख्सियत नहीं, बान्क संपूर्ण इतिहास था , जिसके आईने में भविष्य का अक्स साफ दिखाई पड़ता था ! पर्वत की तरह अटल, गंगा की भांति निर्मल, मोम की तरह कोमल व सागर की भांति शांत , भीतर ही भीतर भविष्य की थाह लेना। वह आज के राजनेताओं की भांति सपने दिखाते नहीं , बल्कि सपने बुनते थे। यही कारण है कि उनके द्वारा बुने गए सपनों के तार आज तक नहीं टूटे है ! आज वे होते तो एक शताब्दी का सफर पार कर चुके होते , मगर नियति के आगे भला किसकी चली है। संसार में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें भुला पाना बड़ा मुश्किल होता है। ऐसी ही शासियत के धनी थे हिमाचल निर्माता डॉ यशवंत सिंह परमार। डा. परमार को यदि युग पुरुष कहा जाए तो भी कोई अतिशयोक्ति न होगी ! उन्होंने न केवल हिमाचल का निर्माण किया , बल्कि पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों का हिमाचल में विलय कर वृहद हिमाचल का गठन किया। चार अगस्त 1906 को जिला सिरमौर की पच्छाद तहसील के चन्हालग में जन्मे डॉ. वाईएस परमार ने न केवल वकालत की डिग्री हासिल की थी, बल्कि लखनऊ विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पीएचडी की उपाधि भी प्राप्त की थी। 
उन्होंने कभी भी अपने कार्यकाल के दौरान क्षेत्रबाद तथा भाई भतीजा बाद को बढ़ावा नहीं दिया डा. परमार ने हमेशा ही पूरे राज्य के समान विकास की पैरवी की। चार अगस्त को प्रदेश हिमाचल निर्माता डॉ. वाई.एस. परमार की 119वीं जयंती मना रहा है। मगर विडंबना देखिए पूरे राज्य का समान विकास करने वाले युगपुरुष डॉ. परमार का गृह जिला आज भी विकास को लिए तरस रहा है। आग यह है कि सिरमौर जिला की पच्छाद तहसील की ग्राम पंचायत लाना बांका के चन्हालग जो डा. परमार की जन्म स्थली है, आज भी विकास से कोसो दूर है ! डा. परमार का युग उनके साथ ही खत्म हो गया ! डॉ. परमार के बाद कई आए और आकर चले गए ! कईयों ने उनके बाद यशवंत बनने का प्रयास किये , मगर उस महान व्यक्तित्व की बराबरी न हो सकी। पहाड़ की पीड़ा को भली भांति जानने वाले डा.  परमार ने योजना आयोग को हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य के बारे में सोचने पर विवश कर दिया और कामयाब भी हुए । डा. परमार एकमात्र ऐसी शख्सियत थे , जिन्होंने पहाड़ी जनजीवन , यहां के संस्कार व संस्कृति को भली-भांति समझते थे। 
तभी तो जब भी वह किसी कार्यक्रम में जाते थे तो पंगत ( नीचे बैठकर ) में बैठकर सभी के साथ भौजन करते थे ! आज के नेताओं की तरह वीआईपी भोज नहीं करते थे। डा. परमार हमेशा ही जमीन पर बैठकर भोजन करते थे ! उन्होंने कभी भी कुर्सी टेबल पर खाना नहीं खाया ! वे अपने लोगों ,  जंगलों , पहाड़ों और मिट्टी को नई पहचान देने के लिए हिमाचल की सेवा में तन्मयता से जुट गए ! उन्होंने गांव- गांव जाकर लोगों को सरकारी नौकरी करने की बजाए बागवानी , पशुपालन तथा खेती-बाड़ी करने के लिए प्रेरित किए। कई बार उन्हे अन्जान लोगों की प्रताड़‌ना का शिकार बनना पड़ता था ! मगर उन्होंने कभी भी किसी की बात का बुरा नहीं माना , क्योंकि वे वक्त की नजाकत को भली भांति जानते थे। महान व्यक्तित्व के धनी डा. परमार जुझारू नेता थे। पहाड़ की विषम परिस्थितियाँ   होने के बावजूद भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। सत्ता में रहते हुए भी कभी सत्ता सुख नहीं भोगा!  उन्होंने स्वयं को प्रदेश का मुखिया नहीं, सेवक माना और ताउम्र सेवा करते रहे ! 
आलम यह था कि मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उनके बैंक खाते में मात्र 563 रुपए थे। हिमाचली जन मानस के प्रति केंद्र सरकार के नेताओं का रवैया बदलने में उन्होंने जो भूमिका निभाई वह काबिले तारीफ थी। पूरे राज्य की बागडोर संभालने वाला शक्स न तो कभी पारिवारिक स्वार्थ के वशीभूत हुआ और नहीं कभी क्षेत्रवाद के। यही कारण है कि संपूर्ण प्रदेश मै उन्होंने समान विकास का अपना व्यर्तव्य कुशलता पूर्वक निभाया। एक नव गठित भौगोलिक राज्य को अंगुली पकड़कर आगे चलना सीखना हो तो डा. यशवंत सिंह परमार से सीखा जा सकता है। डाक्टरेट की उपाधी होने के बावजूद भी उन्होंने राज्य के अनपढ़ ग्रामीणों के साथ बैठकर राज्य के विकास के लिए योजना बनाने में जुटे रहते हो। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी उन्हें हिमाचल के विकास की चिंता सताए रहती थी ! केंद्र में उनके पं० नेहरू, इंदिरा गांधी व सरदार पटेल सरीखे नेताओं से बहुत मधुर संबंध थे , जिस‌के परिणाम स्वरूप हिमाचल जैसे छोटे पहाड़ी राज्य को पंजाब से अलग कर विशाल हिमाचल का निर्माण किया।
 

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow