गुरु नानक जी के घर से हुई थी सबसे पहले 'लंगर' की शुरुआत, जानें क्या थी वजह
देश भर में गुरुद्वारे में मिलने वाले लंगर यानी प्रसाद खाने के लिए सभी जाते हैं। सिर्फ खाने ही नहीं लोग निस्वार्थ भाव से लंगर में काम करने के लिए भी उत्साहित रहते हैं। सादा होते हुए भी लंगर के खाने का स्वाद बेहद स्वादिष्ट होता
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यंगवार्ता न्यूज़ - पांवटा साहिब 15-11-2024
देश भर में गुरुद्वारे में मिलने वाले लंगर यानी प्रसाद खाने के लिए सभी जाते हैं। सिर्फ खाने ही नहीं लोग निस्वार्थ भाव से लंगर में काम करने के लिए भी उत्साहित रहते हैं। सादा होते हुए भी लंगर के खाने का स्वाद बेहद स्वादिष्ट होता है। गुरु नानक जी कहा करते थे कि गुरु बनने का मतलब यह नहीं कि आप गद्दी पर बैठिए, बल्कि आम लोगों से मिलिए, उनके साथ खाना खाइए, उनसे बात कीजिए, तभी सच्ची खुशी मिलती है।
पांवटा ऐतिहासिक गुरुद्वारा के गुरमेल सिंह ने बताया कि, एक बार सिखों के पहले गुरु नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए कुछ पैसे दिए, जिसे देकर उन्होंने कहा कि वो बाजार से सौदा करके कुछ कमा कर लाए। नानक देव जी इन पैसों को लेकर जा रहे थे कि उन्होंने कुछ भिखारियों को देखा, उन्होंने वो पैसे भूखों को खिलाने में खर्च कर दिए और खाली हाथ घर लौट आए।
नानक जी की इस हरकत से उनके पिता बहुत गुस्सा हुए, जिसके बाद नानक देव जी ने कहा कि सच्चा लाभ तो सेवा करने में है।कहा जाता है कि लंगर नानक जी के घर पर ही शुरू हो गया था, जिसे आने वाले गुरुओं ने भी जारी रखा। वे कहते थे कि चाहे अमीर हो या गरीब, ऊंची जाति का हो या नीची जाति, अगर वह भूखा है तो उसे खाना जरूर खिलाओ।
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