प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए मौसम पूर्वानुमानों का विकेंद्रीकरण आवश्यक , अनुराग ठाकुर ने सदन में उठाया मुद्दा  

पूर्व केंद्रीय मंत्री व हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद अनुराग सिंह ठाकुर ने आज संसद में नियम 377 के अन्तर्गत कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए मौसम के पूर्वानुमानों का विकेंद्रीकरण, जिला स्तरीय संस्थाओं को सशक्त बनाने, अधिक स्वचालित मौसम केंद्र स्थापित करने व ब्लॉक स्तर और ग्राम स्तर पर अलर्ट जारी करने की बात कही है

Aug 19, 2025 - 20:02
Aug 19, 2025 - 20:14
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प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए मौसम पूर्वानुमानों का विकेंद्रीकरण आवश्यक , अनुराग ठाकुर ने सदन में उठाया मुद्दा  

यंगवार्ता न्यूज़ - हमीरपुर  19-08-2025
पूर्व केंद्रीय मंत्री व हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद अनुराग सिंह ठाकुर ने आज संसद में नियम 377 के अन्तर्गत कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए मौसम के पूर्वानुमानों का विकेंद्रीकरण, जिला स्तरीय संस्थाओं को सशक्त बनाने, अधिक स्वचालित मौसम केंद्र स्थापित करने व ब्लॉक स्तर और ग्राम स्तर पर अलर्ट जारी करने की बात कही है। संसद में नियम 377 के अन्तर्गत अनुराग सिंह ठाकुर ने कहा कि हाल के हफ्तों में हिमाचल प्रदेश में 14 बादल फटने और 3 अचानक से आई बाढ़ की घटनाएं देखी गईं , जिसके परिणामस्वरूप 78 दुखद मौतें हुईं , व्यापक भूस्खलन हुआ और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुँचा। 
इसी समय 5 अगस्त को बादल फटने से उत्तराखंड के धराली में अचानक आई बाढ़ ने लोगों की जान ले ली और घरों , सड़कों और आजीविका को नष्ट कर दिया। ये घटनाएँ अचानक मौसम में चिंताजनक बदलाव को दर्शाती हैं। अनुराग ठाकुर ने कहा कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी ) पूर्वानुमान मॉडल 6x6 किमी ग्रिड पर काम करता है , जो पिछले 12x12 किमी से एक महत्वपूर्ण सुधार है , लेकिन हमारे पहाड़ी क्षेत्रों के सूक्ष्म जलवायु परिवर्तनों के लिए अभी भी अपर्याप्त है। हिमालय में एक तरफ़ सूखा हो सकता जबकि, दूसरी ओर घाटी में मूसलाधार बारिश हो सकती है। 1 किमी रिज़ॉल्यूशन या स्टेशन-स्तरीय प्रणालियों जैसे सूक्ष्म स्तरीय पूर्वानुमानों के बिना, पूर्व चेतावनी और निकासी सीमित रह सकती है। 
जैसा कि प्रधानमंत्री ने आपदा-रोधी बुनियादी ढांचे पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में ज़ोर दिया था कि लचीलापन हमारी प्रणालियों में अंतर्निहित होना चाहिए और आधुनिक तकनीक जब स्थानीय जानकारी के साथ एकीकृत होती है, तो जान बचा सकती है। इसी तर्ज पर हमें पूर्वानुमानों का विकेंद्रीकरण करना होगा , जिला स्तरीय संस्थाओं को सशक्त बनाना होगा, अधिक स्वचालित मौसम केंद्र स्थापित करने होंगे और ब्लॉक स्तर और ग्राम स्तर पर अलर्ट जारी करने होंगे। सामुदायिक स्तर पर यह प्रसार पूर्व चेतावनी और समय पर निकासी सुनिश्चित कर सकता है। ये महत्वपूर्ण कदम संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में जीवन , आजीविका और बुनियादी ढांचे की रक्षा करने में मदद कर सकते हैं। 

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