कृषि विश्वविद्यालय प्रसार शिक्षा निदेशालय प्रत्येक महीने जारी करेगा किसानों के लिए मार्गदर्शिका : निदेशक प्रसार शिक्षा

कृषि विज्ञान केंद्र, सिरमौर के प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डा. पंकज मित्तल ने बताया की कृषि विश्वविद्यालय की इस अनूठी पहल से अब जिला सिरमौर के किसान भाई भी लाभ उठा पाएंगे। इसी कड़ी में सितम्बर , 2024 माह के पहले पखवाड़े में किये जाने वाले मौसम पूर्वानुमान सम्बन्धित कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में मार्गदर्शिका जारी की गई है

Sep 1, 2024 - 19:12
Sep 1, 2024 - 19:30
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कृषि विश्वविद्यालय प्रसार शिक्षा निदेशालय प्रत्येक महीने जारी करेगा किसानों के लिए मार्गदर्शिका : निदेशक प्रसार शिक्षा

यंगवार्ता न्यूज़ - पांवटा साहिब  01-09-2024

कृषि विज्ञान केंद्र, सिरमौर के प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डा. पंकज मित्तल ने बताया की कृषि विश्वविद्यालय की इस अनूठी पहल से अब जिला सिरमौर के किसान भाई भी लाभ उठा पाएंगे। इसी कड़ी में सितम्बर , 2024 माह के पहले पखवाड़े में किये जाने वाले मौसम पूर्वानुमान सम्बन्धित कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में मार्गदर्शिका जारी की गई है जो किसानों के लिए लाभप्रद साबित होगी। खाद एवं दवा की प्रति हैक्टेयर में दी गई मात्रा को प्रति बीघा में रूपांतरित करने के लिए 12.5 से भाग करें। धान में नाइट्रोजन की दूसरी व अन्तिम मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में 50-55 दिनों के बाद अर्थात बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था में अधिक उपज देने वाली उन्नत प्रजातियों के लिए 30 कि.ग्रा. तथा सुगन्धित प्रजातियों के लिए 15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें। मक्का की फसल में अधिक वर्षा होने की स्थिति में खेत से जल निकास की स्थिति में खेत से जल निकास का उचित प्रबंध करें। 
फसल में नर मंजरी निकलने की अवस्था एवं दाने की दूधियावस्था में सिंचाई की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण हैं। यदि विगत दिनों में वर्षा न हुई हो या नमी की कमी हो अतः इस अवस्था में सिंचाई अवश्य करें। मक्का की दाने के लिए कटाई, तब करें जब मुट्टों के ऊपर की पत्तियां सूखने लगें तथा दाना सख्त हो जाए। इस समय दानों में 25-30 प्रतिशत नमी रहती है। कटाई के बाद भुट्टों को एक सप्ताह के लिए धूप में सुखाएं तथा बाद में मक्का मढाई मशीन से दानों को मुट्टों से अलग कर दे। प्रदेश के निचले पर्वतीय क्षेत्रों में फूलगोभी की दरम्याना किस्में पालम उपहार, इम्पूवड जापानीज, मेघा की तैयार पौध की रोपाई करें। रोपाई से पूर्व 250 किंवटल गोबर की गली सड़ी खाद के अतिरिक्त 235 किलोग्राम इफको (12:32:16) मिश्रण खाद, 54 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश तथा 105 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर खेत में डालें।
 इन्हीं क्षेत्रों में फूलगोभी की पिछेती किस्म पूसा स्नोवॉल 16, के-1, के.टी.-25, पूसा सुधा तथा संकर किस्म श्वेता, 626, माधुरी, महारानी, लक्की, व्हाईट गोल्ड इत्यादि, बन्दगोभी की किस्म प्राईड आफ इण्डिया, गोल्डन एकड़, पूसा मुक्ता तथा संकर वरूण, वहार इत्यादि, गांठ गोभी की किस्म व्हाईट वियाना, पालम टैण्डरनॉब, परपल वियाना, ब्रॉकली की किस्म पालम समृधि, पालम हरीतिका, पालम कंचन व पालम विचित्रा तथा चाईनीज बन्दगोभी की किस्म पालमपुर ग्रीन की पनीरी दें। नर्सरी पौध उगाने के लिए तीन मीटर लंबी 1 मीटर चौड़ी तथा 10 से 15 सेंटीमीटर ऊंची क्यारी में 25 से 30 किलोग्राम सड़ी-गली गोबर की खाद, 240 ग्राम इफको (12:32:16), 20-25 ग्रा. फफूंदनाशक इण्डोफिल एम 45 तथा 10-15 ग्राम कीटनाशक जैसे थीमेट या फोलीडॉल धूल 5 सें.मी. मिट्टी की उपरी सतह में मिलाने के उपरान्त 5 सें.मी. पंक्तियों की दूरी पर बीज की पतली लाइन में बिजाई करें। 
इन्ही क्षेत्रों में पालक की किस्म पूसा हरित, पूसा भारती, मेथी की किस्म आई.सी. 74, पालम सौम्या, पूसा कसूरी इत्यादि की बिजाई पंक्तियों में 25-30 सें.मी. की दूरी पर करें। बिजाई के समय 100 क्विटल गोबर की सड़ी-गली खाद के अतिरिक्त 150 किलोग्राम (12:32-16) मिश्रण खाद तथा 15 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें। मध्यवर्ती पहाडी क्षेत्रों में मटर की अगेती किस्म पालम त्रिलोकी, अरकल, वी.एल. 7 तथा मटर अगेता की बिजाई 30 एवं 7.5 से.मी. की दूरी पर करें। बिजाई के समय 200 क्विंटल गोबर की सड़ी-गली खाद के अतिरिक्त 185 किलोग्राम इफको (12:32:16) मिश्रण खाद तथा 50 किलोग्राम म्यूरेट आफै पोटाश प्रति हैक्टेयर खेत में डालें। इन्हीं क्षेत्रों में फूलगोभी की पछेती किस्म, बन्दगोभी, गाँठ गोभी, मूली, शलगम, गाजर, पालक, मेथी इत्यादि की बिजाई का भी उचित समय चल रहा है। धान की फसल में पत्ता लपेट कीट के नियन्त्रण के लिए कीटग्रस्त पत्तों को काट दें तथा खेत व मेडों से घास आदि निकाल दें। इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 मि.ली./लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। 
धान में तना छेदक कीट के आक्रमण की स्थिति में सफेद बालियां बनती है। 5 प्रतिशत से अधिक नुकसान होने पर लेम्डा साईहैलोथ्रिन 0.8 मिली लीटर प्रति लीटर पानी के घोल बनाकर छिड़काव करें। धान में हिस्पा कीट के नियन्त्रण के लिए क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 मि.ली. / लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें। बैंगन में तना एवं फल छेदक सुण्डियों तथा करेला में हैड्डा बीटल के नियंत्रण के लिए एवं फसलों में पत्ते खाने वाली विभिन्न प्रकार की सुण्डियों का प्रकोप होने पर साइपरमेथरीन 10 ई.सी. 1.5 मि.ली./लीटर या इमामेक्टिन बेंजोइट 0.4 मि.ली. का छिड़काव करें। सितंबर माह में बरसात कम होने तथा पहाडी क्षेत्रों में हल्की ठंड का आगमन होने से कीटों और परजीवियों की सक्रियता में कमी आने लगती है परंतु मैदानी क्षेत्रों में कई प्रकार के कीटों एवं परजीवियों की सक्रियता वातावरणीय परिस्थिति के कारण बनी रहती है इसलिए पशुधन को काटने वालों कीटों की रोकधाम के लिए विशेष ध्यान दें एवं सावधानी बरतें। बरसात के मौसम में पशुओं में तनाव के कारण कई प्रकार के दुष्प्रभाव पड़ते हैं तथा इस स्थिति में कुछ घातक संक्रामक रोग पनप सकते हैं। 
इन बीमारियों में खुरपका मुंहपका , लम्पी स्किन रोग , गलघोटू, लंगड़ा बुखार और 3 दिन वाला बुखार प्रमुख हैं। जानवरों में बीमारी के किसी भी लक्षण जैसे भूख न लगना या कम होना तेज बुखार या फिर पेशाब के साथ खून आने की स्थिति में तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह लें। पशुओं को संक्रामक रोगों से बचाने के लिए पशुओं को सूखी जगह पर रखें और सूखा बिस्तर उपलब्ध कराएं। पानी के बर्तनों को नियमित अंतराल पर साफ करें। पशुओं को बदलते मौसम से बचाने के लिए उनके चारे तथा रखरखाव पर विशेष ध्यान दें तथा उन्हें अच्छी तरह से बने गौशालाओं में रखे। इस महीने में मेड़ का उन कतरने का कार्य भी करना चाहिए तथा भेड़ बकरियों को चारागाह में भेजने से पहले उनको कीड़े मारने की दवाई दे। परजीवी रोगों की रोकथाम के लिए पशुओं के गोबर की जांच पशु चिकित्सालय में करवा लें और रोगों की निश्चित तौर पर पहचान हो जाने पर पशु चिकित्सक से रोगी पशुओं का उपचार करवाएं। पशुओं के पीने का पानी उनके मल से संक्रमित नहीं होने दें। 
बाहय परजीवियों के नियंत्रण के लिए पशु चिकित्सक की सलाह से कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करें। सितंबर माह में जिन जिलों में विषाणुओं से होने वाले रोगों का खतरा रहेगा वो इस प्रकार हैं खुरपका और मुंहपका गलाघोंटू रोग सिरमौर जिला में। इन बीमारियों की रोकथाम के लिए टीकाकरण हेतू पशु चिकित्सक से परामर्श प्राप्त करें। बरसीम की पहली बिजाई इस माह के अंतिम सप्ताह में शुरू करें। बरसीम की पहली कटाई से अधिक चारा लेने के लिए सरसों या जई मिलाकर बिजाई करें। हरे चारे से साइलेज बनाए, हरे चारे के साथ सूखे चारे को मिलाकर पशुओं को खिलाएं। मछली पालक तालाब प्रबंधन के लाभों को अधिकतम करने के लिए सही फीड का उपयोग करें जो कि स्वस्थ मछली के विकास को सुनिश्चित करने के अलावा तेजी से विकास करने में भी मदद करती है। 
इसके अलावा तालाब के बातावरण को स्वच्छ और अनुकूल बनाए रखें। सितंबर महीने के लिए मछली पालकों द्वारा ध्यान रखने योग्य बातें इस प्रकार है पानी की गुणवत्ता की नियमित जांच करें, समुचित विकास के लिए मछलियों को पूरक आहार की पर्याप्त आपूर्ति और मछली के स्वास्थ्य और विकास की जांच के लिए अवधिक जाल लगाना है। किसान भाईयों एवं पशु पालकों से अनुरोध है कि अपने क्षेत्रों की भौगोलिक तथा पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक एवं अतिविशिष्ट जानकारी हेतू नजदीक के जिला कृषि विज्ञान केन्द्र, कृषि विभाग के अधिकारी एवं पशुपालन विभाग के अधिकारी से सम्पर्क बनाए रखें। अधिक जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र,एटिक 01894 -230395/1800-180-1551 से भी सम्पर्क कर सकते हैं। 

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