यंगवार्ता न्यूज़ - ऊना 11-08-2025
हिमाचल प्रदेश जल्द ही बूढ़ों का प्रदेश बन जाएगा और वो दिन दूर नहीं जब आपको इस वीरभूमि में बच्चे और नौजवान ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि हिमाचल प्रदेश देश के उन राज्यों में शामिल हो गया है जिनकी कुल प्रजनन दर ( Total Fertility Rate ) सबसे कम है। संतान उत्पत्ति दर में हो रही यह गिरावट प्रदेश के लिए चिंता का विषय बन गया है। हिमाचल की प्रजनन दर लगातार घट रही है और अगर यह गिरावट यूं ही जारी रही तो वे दिन दूर नहीं जब आपको हिमाचल में बच्चे और नौजवान ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे। राष्ट्रीय प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य ( RCH ) कार्यक्रम के सलाहकार डॉ. नरेश पुरोहित ने बताया कि पहाड़ी राज्य में वर्तमान में औसत प्रजनन दर 1.5 है।
सिरमौर स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान द्वारा आयोजित ‘प्रजनन क्षमता में गिरावट के कारण चुनौतियां विषय पर आज यहां एक वेबीनार का आयोजन किया गया। इसमें ‘वर्चुअल’ माध्यम से अपने संबोधन में फेडरेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विस इंडिया (एफआरएचएस) के कार्यकारी सदस्य डॉ. पुरोहित ने कहा कि 75 लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में घटती कुल प्रजनन दर चिंता का विषय है। हालांकि गोवा और सिक्किम में टीएफआर हिमाचल से भी कम है। उन्होंने बताया कि संतान उत्पत्ति क्षमता में गिरावट वैश्विक चिंता का विषय बनता जा रहा है । भारत में हर चार में से एक दंपति को गर्भधारण करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। यह चिंताजनक प्रवृत्ति भारत को प्रजनन संबंधी चुनौतियों का एक संभावित केंद्र बनाती है जिसमें खासकर शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में रहने वाले दंपति शामिल हैं। उन्होंने कहा “हिमाचल प्रदेश में कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate) लगातार गिर रही है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, हिमाचल प्रदेश के अनुसार 2015-16 में आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में यह 1.9 थी जो 2019-21 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 में 1.7 हो गई और अब यह और गिरकर 1.5 हो गई है। उन्होंने राज्य में टीएफआर दर में लगातार गिरावट का मुख्य कारण महिलाओं में बढ़ती साक्षरता को बताया। उन्होंने कहा “कुल प्रजनन दर (टीएफआर) महिलाओं की साक्षरता दर से बहुत करीबी से जुड़ी है। महिलाओं में साक्षरता दर बढ़ने के साथ ही कुल टीएफआर दर भी गिरती है। हिमाचल प्रदेश में 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं में साक्षरता दर 75.9 प्रतिशत तक पहुंच गई।
उन्होंने बताया कि राज्य में महिलाओं में गर्भनिरोधकों के बारे में जानकारी और उनका उपयोग भी अपेक्षाकृत अधिक है जिससे टीएफआर में गिरावट आई है। एक हालिया अध्ययन के अनुसार महिलाओं की शादी देर से हो रही है और 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग की 75 प्रतिशत महिलाएं गर्भनिरोधक का उपयोग कर रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार प्रजनन क्षमता आयु वाली महिलाओं में सामान्य हार्मोनल विकार पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) और पेल्विक इंफ्लेमेटरी संक्रमण में वृद्धि भी बांझपन के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने गर्भधारण क्षमता में कमी से निपटने के लिए शैक्षिक पहल की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया और इसके लिए जीवनशैली और पर्यावरणीय कारकों को जिम्मेदार ठहराया।