पांगी क्षेत्र में ‘जुकारू उत्सव’ का हुआ आगाज, घाटी में 12 दिन तक रहेगी उत्सव की धूम

हिमाचल प्रदेश को ‘देवभूमि’ भी कहा जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि यहां के कण-कण में देवताओं का वास है। हिमाचल एक पहाड़ी और प्राचीन सभ्यता से जुड़ा हुआ स्थल रहा है। यहां पर त्योहार और मेलों को स्थानीय लोग बड़े ही धूमधाम

Feb 10, 2024 - 19:38
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पांगी क्षेत्र में ‘जुकारू उत्सव’ का हुआ आगाज, घाटी में 12 दिन तक रहेगी उत्सव की धूम

यंगवार्ता न्यूज़ - चंबा     10-02-2024

हिमाचल प्रदेश को ‘देवभूमि’ भी कहा जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि यहां के कण-कण में देवताओं का वास है। हिमाचल एक पहाड़ी और प्राचीन सभ्यता से जुड़ा हुआ स्थल रहा है। यहां पर त्योहार और मेलों को स्थानीय लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। जिला चंबा के जनजातीय क्षेत्र पांगी में 12 दिवसीय ‘जुकारू उत्सव’ का आगाज शनिवार से हो गया। 

अब पांगी घाटी में 12 दिन तक जुकारू उत्सव की धूम रहेगी। उत्सव को आपसी भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। आगामी शुक्रवार मध्यरात्रि को घाटी के लोग अपने घरों की दीवारों पर बली राजा का चित्र उकेरेंगे। इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। वहीं पड़ीद के पहले दिन सिलह के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पंगवाल समूदाय अपने घरों में लिपाई पुताई करते है। 

शाम को घर के मुखिया भरेस भंगड़ी और आटे के बकरे बनाता है। ये बनाते समय कोई किसी से बातचीत नहीं करता है। पूजा सामग्री अलग कमरे में रखी जाती है। रात्रि भोजन के बाद गोबर की लिपाई की जाएगी। वहीं, सुबह करीब तीन बजे बलीराज को गंगाजल के छिड़काव व विशेष पूजा अर्चना के बाद बली राजा का प्राण प्रतिष्ठा किया जाता है। 

इसके बाद 12 दिनों तक पांगी घाटी के लोग बलीराज की पुजा करते हैं। वहीं बालीराज के समक्ष चौका लगाया जाता है। गोमूत्र और गंगाजल छिड़कने के बाद गेहूं के आटे और जौ के सत्तुओं से मंडप लिखा जाता है। जिसे पंगवाली भाषा में चौका कहते हैं। मंडप के सामने दिवार पर बली राजा की मूर्ति स्थापित की जाती है। इसे स्थानीय बोली में जन बलदानों राजा कहते हैं। 

आटे से बने बकरे, मेंढ़े आदि मंडप में तिनकों के सहारे रखे जाते हैं। मंडप बनाने वाला बली राजा की पूजा करता है। घाटी के बाशिंदे आटे के बकरे (चौक) तैयार कर राजा बलि को अर्पित करेंगे। धूप-दीये और चौक लगाकर 12 दिन तक राजा बलि की ही पूजा करेंगे। इस दौरान कुलदेवता से लेकर अन्य देवी-देवताओं की पूजा नहीं की जाती है। आज लोग एक-दूसरे के घरों में जाकर बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद ले रहे है। जिसे स्थानीय भाषा में पड़ीद कहते हैं।

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