न्यूज़ एजेंसी - नई दिल्ली 12-04-2024
देश के नामी स्वास्थ्यों को लेकर आईसीएमआर द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में हैरतअंगेज खुलासा सामने आया है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ( आईसीएमआर ) द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश के नामी स्वास्थ्यों में करीब 45 प्रतिशत से अधिक डॉक्टर आधा अधूरा उपचार लिख रहे हैं , जो रोगियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ है। देश के 13 नामचीन सरकारी अस्पतालों का सर्वे करने के बाद आईसीएमआर ने यह रिपोर्ट सार्वजनिक की है , जिसमें चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं। जानकारी के मुताबिक भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा वर्ष 2019 में देश के 13 नामी स्वास्थ्य संस्थानों का सर्वेक्षण किया है।
इनमें दिल्ली एम्स , सफदरजंग अस्पताल , भोपाल एम्स , बड़ौदा मेडिकल कॉलेज , मुंबई जीएसएमसी , ग्रेटर नोएडा स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज , सीएमसी वेल्लोर, पीजीआई चंडीगढ़ और इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज पटना मुख्य तौर पर शामिल हैं। इन अस्पतालों से कुल 7,800 मरीजों के पर्चे ( प्रिस्क्रिप्शन ) लिए गए। इनमें से 4,838 की जांच की गई, जिनमें से 2,171 परचों में खामियां मिलीं। हैरानी तब हुई जब 475, यानी करीब 9.8% परचे पूरी तरह गलत पाए गए। यह ऐसी स्थिति है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। बताते हैं कि डॉक्टर द्वारा जो प्रिस्क्रिप्शन लिखा गया था वह आधा अधूरा था।
हैरानी की बात तो यह है कि जब 475 यानी करीब 9.8 प्रतिशत पर्चे पूरी तरह गलत पाए गए। मजेदार बात तो यह है कि यह जो सर्वे किया गया वह सरकारी अस्पतालों का सर्वे था। बताते हैं कि यदि निजी अस्पतालों का भी सर्वेक्षण करवाया जाता तो कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आते। आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक चिकित्सकों द्वारा जो प्रिस्क्रिप्शन लिखा गया था वह आधा अधूरा था। जो पूरी तरह रोगियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ की ओर इशारा करता है। मजेदार बात तो यह है कि जिन डॉक्टरों द्वारा प्रिस्क्रिप्शन लिखा गया था वह डॉक्टर पिछले 4 से 18 वर्षों से प्रैक्टिस कर रहे हैं। बावजूद इसके भी पर्ची में आधी अधूरी जानकारी दी गई है। मरीजों के पर्चे में ना तो दवा की खुराक लेने की अवधि लिखी है कि कितनी बार सेवन करना है।
दवा का फॉर्मूलेशन क्या है और मरीजों को किस समय देनी है। इस बात का भी कोई जिक्र नहीं है। आईसीएमआर की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ ) ने जो वर्ष 1985 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपचार को लेकर तर्कसंगत दिशा निर्देश दिए थे उन्हें लागू नहीं किया गया है। यही नहीं अधिकांश मरीजों को यह भी पता नहीं कि उन्हें कौन सी दवा किस परेशानी के लिए दी जा रही है और इसका सेवन कब तक करना है। आईसीएमआर की रिपोर्ट आने के बाद चिकित्सकों में हड़कंप मच गया है।