एचआरटीसी मामले में हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता अनुबंध कंडक्टरों को समकक्षों के बराबर नियमितीकरण का लाभ देने का आदेश
हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) मामले में हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता अनुबंध कंडक्टरों को उनके समकक्षों के बराबर नियमितीकरण का लाभ देने का आदेश दिया
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 06-11-2025
हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) मामले में हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता अनुबंध कंडक्टरों को उनके समकक्षों के बराबर नियमितीकरण का लाभ देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने एचआरटीसी को आदेश दिया कि याचिकाकर्ताओं को 11 मार्च 2022 और 28 मई 2022 से सांकेतिक (नोशनल) अनुबंध नियुक्ति दी जाए और उनकी सेवाओं को 11 अप्रैल 2025 से नियमित किया जाए।
याचिकाकर्ता इस नियमितीकरण के कारण होने वाले मौद्रिक लाभों के भी हकदार होंगे। निगम को यह पूरी प्रक्रिया छह सप्ताह के भीतर पूरी करने के आदेश दिए हैं। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति में हुई देरी के लिए वे नहीं, बल्कि एचआरटीसी की निष्क्रियता जिम्मेदार थी।
2019 में विज्ञापित 568 पदों में से 47 उम्मीदवारों के शामिल न होने पर वेटिंग पैनल से 11 मार्च 2022 को अन्य 47 को नियुक्त किया गया था। रिकॉर्ड के अनुसार 32 और पद खाली थे क्योंकि उम्मीदवारों ने प्रशिक्षण के दौरान नौकरी छोड़ दी थी, जिन्हें भी उसी समय वेटिंग पैनल से भरा जाना चाहिए था।
एचआरटीसी ने इन 32 पदों को वेटिंग पैनल से नहीं भरा, जिसके कारण याचिकाकर्ताओं को पहले लक्ष्मी दत्त और अन्य मामले में याचिका दायर करनी पड़ी। कोर्ट के निर्देशों के बाद ही याचिकाकर्ताओं को 18 सितंबर 2024 को अनुबंध कंडक्टर के रूप में नियुक्ति मिली। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता उन 47 उम्मीदवारों के समान स्थिति में हैं, जिनकी सेवाएं 11 अप्रैल 2025 को नियमित की गई।
प्रदेश हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को उनके 8 साल की निरंतर दैनिक वेतनभोगी सेवा पूरी होने की तारीख से छह सप्ताह के भीतर वर्कचार्ज का दर्जा देने के निर्देश दिए हैं। न्यायाधीश रंजन शर्मा की अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को वर्कचार्ज का दर्जा उनकी देय तिथि से केवल सांकेतिक लाभ के साथ मिलेगा, न कि पिछले बकाया या मौद्रिक लाभों के साथ दिया जाएगा।
याचिकाकर्ता जनवरी 1995 में पीडब्ल्यूडी में दैनिक वेतनभोगी बेलदार के रूप में नियुक्त किया गया था। उनकी सेवाएं 2007 में नियमित की गई, लेकिन उन्होंने 8 साल की निरंतर दैनिक वेतनभोगी सेवा पूरी करने की तारीख यानी 2003 से नियमितीकरण और वर्कचार्ज स्थिति का लाभ मांगा।
राज्य ने यह तर्क दिया कि अगस्त 2005 में पीडब्ल्यूडी में वर्कचार्ज श्रेणी समाप्त कर दी गई थी, इसलिए 8 साल पूरे होने की तारीख से वर्क चार्ज का दर्जा देने का दावा मान्य नहीं है। अदालत ने कहा कि मैंडेज चार्ट से यह स्थापित होता है कि याचिकाकर्ता ने 1995 से 2003 तक 8 साल की निरंतर सेवा यानी 240 दिन से अधिक पूरी की है, इसलिए वह 1 जनवरी 2003 से वर्कचार्ज स्थिति प्राप्त करने का हकदार है।
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