मणिमहेश यात्रा के दौरान 22 सितम्बर को डल तोड़ने के बाद शुरू होगा राधाष्टमी का शाही स्नान 

उत्तरी भारत की प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा के दौरान 22 सितम्बर दोपहर बाद 1 बजे से पहले डल झील को तोड़ने की परंपरा के बाद अष्टमी के शाही स्नान की शुरूआत होगी। सचुई गांव के त्रिलोचन महादेव के वंशज शिवजी भगवान के गुरों धर्म चंद, विजय कुमार, चमन लाल तथा उत्तम चंद ने बताया कि पुरानी मान्यताओं के अनुसार डल झील को पार करने की परंपरा का निर्वहन सप्तमी के दिन होता है। यानी हर वर्ष यह औपचारिकता सप्तमी को ही निभाई जाती

Sep 17, 2023 - 19:00
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मणिमहेश यात्रा के दौरान 22 सितम्बर को डल तोड़ने के बाद शुरू होगा राधाष्टमी का शाही स्नान 
यंगवार्ता न्यूज़ - चंबा  17-09-2023
उत्तरी भारत की प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा के दौरान 22 सितम्बर दोपहर बाद 1 बजे से पहले डल झील को तोड़ने की परंपरा के बाद अष्टमी के शाही स्नान की शुरूआत होगी। सचुई गांव के त्रिलोचन महादेव के वंशज शिवजी भगवान के गुरों धर्म चंद, विजय कुमार, चमन लाल तथा उत्तम चंद ने बताया कि पुरानी मान्यताओं के अनुसार डल झील को पार करने की परंपरा का निर्वहन सप्तमी के दिन होता है। यानी हर वर्ष यह औपचारिकता सप्तमी को ही निभाई जाती है। उसी के बाद अष्टमी के स्नान की शुरूआत होती है, जिसे राधाष्टमी का स्नान कहा जाता है। सदियों से निभाई जा रही इस परंपरा का निर्वहन सचुई पंचायत के सचुई गांव के त्रिलोचन महादेव के वंशजों द्वारा किया जाता है जो मणिमहेश यात्रा के प्रमुख भागीदारों में से एक हैं। 
मान्यताओं के अनुसार 2 दिनों तक इन शिवगुरों को चौरासी मंदिर परिसर के प्रमुख शिव मंदिर के पंडाल पर बैठना पड़ता है। इस बार 19 सितम्बर को छड़ी चौरासी मन्दिर परिसर के लिए प्रस्थान करेगी तथा 19 और 20 सितम्बर को चौरासी में रहेगी। 21 सितम्बर को सुबह 9 बजे मणिमहेश के लिए रवाना होगी। चौरासी परिक्रमा के बाद पालधा गांव में काॢतकेय मंदिर की परिक्रमा की जाएगी। उसके बाद रात्रि विश्राम के लिए गौरी शंकर मंदिर हड़सर पहुचेंगे। यहां से रात 2 बजे धनछो के लिए रवाना होंगे। धनछो में कार्तिकेय मन्दिर में जातर के उपरांत 22 सितम्बर को भैरोघाटी में प्रसाद ग्रहण करते हुए डल झील पहुंचेंगे तथा 1 बजे से पहले डल झील को पार करने की परंपरा का निर्वहन करेंगे।

उल्लेखनीय है कि अपने पैतृक गांव सचुई से शिवजी भगवान के चेले त्रिलोचन महादेव के वंशज यात्रा पर जाने वाले सभी श्रद्धालुओं को सफल यात्रा की अनुमति देने की परंपरा चौरासी मंदिर के प्रांगण में बैठकर निभाते हैं। जब सभी यात्री राधाष्टमी के पवित्र स्नान के लिए भरमौर से रवाना हो जाते हैं तो उसके बाद ही सभी शिवगुर मणिमहेश के लिए रवाना होते हैं। धर्म चंद एवं उत्तम चंद ने बताया कि परंपरानुसार सभी छड़ियां डल झील को तोड़ने की परंपरा के बाद ही पर्वी का स्नान करती हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि डल झील तोड़ने के बाद राधाष्टमी के स्नान की शुरूआत होगी, लेकिन इस बार डल तोड़ने की परंपरा का निर्वहन 22 सितम्बर 1 बजे से पहले होगा और उसके बाद पर्वी का स्नान शुरू होगा जो 23 सितम्बर दोपहर बाद 2 बजे तक जारी रहेगा।

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