यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 01-08-2023
भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं प्रदेश महामंत्री त्रिलोक कपूर ने कहा आज से सात माह पहले हिमाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में डबल इंजन सरकार प्रदेश की सेवा में कार्यरत थी और उस कालखंड के 5 वर्षों में कोविड जैसी अदृश्य और भयानक महामारी के बावजूद हिमाचल प्रदेश को जिस सकारात्मक सोच के साथ विकास की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया था। उससे भाजपा ने आने वाले विधानसभा चुनावों में संकल्प का नारा दिया था की राज नहीं रिवाज बदलेंगे। लेकिन रिवाज तो नहीं बदला राज बदल गया। इस राज बदलने में जो मुख्य भूमिका थी वह कांग्रेस की गारंटियों का एक बहुत बड़ा षड्यंत्र था।
कांग्रेस भी जानती थी कि इन गारंटीयो को जमीन पर उतारना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव था। लेकिन कांग्रेस ने जानबूझकर एक बहुत बड़ा राजनीतिक जुआ खेल दिया और उस जुए के कारण कांग्रेस सत्ता हासिल करने में कामयाब हुई।
कांग्रेस को एक स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो गया, लेकिन उनका मुख्यमंत्री उम्मीदवार तय नहीं हो पा रहा था और एक लंबी जद्दोजहद के बाद, मुर्दाबाद जिंदाबाद के नारों के बीच में सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वीरभद्र सिंह गुट को पछाड़कर मुख्यमंत्री बनने में कामयाबी हासिल की। मुख्यमंत्री ने शपथ लेने के बाद एक प्रेस वार्ता में कहा कि यह सत्ता परिवर्तन नहीं , बल्कि व्यवस्था परिवर्तन है। हिमाचल की जनता को भी लगा कि इस प्रकार के बयान के पीछे सुखविंदर सिंह सुक्खू का कोई जादू है। उसके बाद व्यवस्था परिवर्तन का जादू देखने को मिला पहले पूर्व सरकार के जितने भी निर्णय थे उसको अफसरशाही ने बदलकर हिमाचल प्रदेश के 1000 से ज्यादा ऐसे संस्थान चाहे वह शिक्षा , स्वास्थ्य और प्रशासन के क्षेत्र में थे उनको डिनोटिफाइड करके व्यवस्था परिवर्तन का उदाहरण जनता के समक्ष रखा। यह हिमाचल की इतिहास में पहली बार होगा कि सत्ता परिवर्तन के तुरंत बाद हिमाचल की जनता सड़कों पर सरकार के खिलाफ उतरी।
हिमाचल की जनता ने जब जानना चाहा कि इन कैबिनेट के निर्णय को बदलने के पीछे सरकार की मंशा क्या है, तो सरकार का उत्तर आया कि हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति इन संस्थानों को चलाने लायक नहीं है। इतिहास इस बात का गवाह है कि सरकार बनने के बाद 1 महीने तक विधायकों की शपथ नहीं हो पाई और मंत्रिमंडल का गठन नहीं हो पाया। व्यवस्था परिवर्तन का दूसरा उदाहरण सामने आया कि संवैधानिक रूप से हिमाचल प्रदेश में अपनी कुर्सी को बचाने के लिए मुख्यमंत्री ने 6 मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त कर एक बहुत बड़ा आर्थिक बोझ प्रदेश की जनता पर डाल दिया। मुख्य संसदीय सचिव के रूप में सुंदर सिंह ठाकुर, मोहनलाल ब्रागटा, राम कुमार, आशीष बुटेल, किशोरी लाल और संजय अवस्थी नियुक्त हुए। दुर्गम क्षेत्र में जो बच्चे पढ़ रहे थे और स्वास्थ्य केंद्रों में जो जनता स्वास्थ्य लाभ ले रही थी उन संस्थानों को बंद करके सुक्खू सरकार को आर्थिक बोर नजर आया पर संसदीय सचिव नियुक्त करते हुए आर्थिक बोझ नजर नहीं आया।
हिमाचल की जनता इस बात का जवाब मांग रही है। हिमाचल सरकार ने करीब एक दर्जन ओएसडी और सलाहकार नियुक्त किये है। इनमे ओएसडी गोपाल शर्मा अर्की , ओएसडी दिल्ली कुलदीप सिंह भांष्टू रोहड़ू , नरेश चौहान प्रधान मीडिया सलाहकार, कैबिनेट रैंक कोटखाई , गोकुल बुटेल प्रधान सलाहकार आईटी , कैबिनेट रैंक , धनवीर ठाकुर ( सेवानिवृत ) सरकाघाट मंडी ओएसडी उप मुख्यमंत्री 11 दिसंबर , सुनील शर्मा बिट्टू राजनीतिक सलाहकार मुख्यमंत्री कैबिनेट रैंक , यशपाल शर्मा मीडिया कोऑर्डिनेटर आईपीआर चंडीगढ़ , अनिल कपिल सलाहकार इन्फ्रास्ट्रिक मुख्यमंत्री, सलाहकार हिमाचल इंफ्रा डेवलपमेंट बोर्ड , आर एस बाली को पर्यटन बोर्ड का चेयरमैन कैबिनेट रैंक के साथ बनाया गया।
रितेश कपरेट ओएसडी मुख्यमंत्री , राम सुभाग सिंह, मुख्यमंत्री प्रधान सलाहकार बनाये है। लेकिन छोटे से हिमाचल प्रदेश जिसकी आबादी 72 लाख के लगभग है, यहां एक दर्जन से भी ज्यादा सलाहकार और एसडीके बटालियन खड़ी करना सीधा-सीधा हिमाचल प्रदेश के ऊपर आर्थिक बोझ है। आठ महीने में इतनी सलाहकारों की फौज खड़ी हुई है, तो अभी सरकार का काफी समय बाकी है। वास्तव में यह सरकार कुर्सी बचाने और यारी निभाने में मदहोश है।