महिलाओं को पूजा से ज्यादा सम्मान की जरूरत,समाज के हर व्यक्ति को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत : चीफ जस्टिस

चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने कहा कि महिलाओं को पूजा से ज्यादा सम्मान की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यहां उपस्थित सभी लोगों से मेरा यही अनुरोध है। समाज में विभिन्न मंचों पर हम लैंगिक न्याय, लैंगिक मुद्दों पर बात करते रहते हैं। ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए सबसे पहले समाज के हर व्यक्ति को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत

Mar 6, 2025 - 11:57
Mar 6, 2025 - 12:07
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महिलाओं को पूजा से ज्यादा सम्मान की जरूरत,समाज के हर व्यक्ति को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत : चीफ जस्टिस

न्यूज़ एजेंसी - नई दिल्ली    06-03-2025

दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने कहा कि महिलाओं को पूजा से ज्यादा सम्मान की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यहां उपस्थित सभी लोगों से मेरा यही अनुरोध है। समाज में विभिन्न मंचों पर हम लैंगिक न्याय, लैंगिक मुद्दों पर बात करते रहते हैं। ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए सबसे पहले समाज के हर व्यक्ति को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है। 

चीफ जस्टिस उपाध्याय दिल्ली हाई कोर्ट के एस ब्लॉक सभागार में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस केवी विश्वनाथन चीफ गेस्ट थे। उन्होंने कहा कि जहां महिलाओं का सम्मान होता है, वहां देवता वास करते हैं। हमें माइंडसेट बदलना होगा। 

जेंडर इक्वालिटी अभी भी अधूरी है। चीफ जस्टिस ने कहा कि आज भी समाज में महिलाओं को पूरा सम्मान और समानता नहीं मिली है। हमें बदलाव लाने की जरूरत है। चीफ जस्टिस उपाध्याय ने कहा कि भले ही समाज में महिलाओं के खिलाफ अन्याय व्याप्त है।

हमारे सामने होता रहता है, लेकिन हम कई बार इनकार की मुद्रा में रहते हैं। उनके अनुसार, इनकार की मुद्रा को त्यागना होगा। हमें इससे बाहर आना होगा, समस्या को पहचानना होगा और तभी हम इसे सुलझा पाएंगे। उन्होंने कहा कि और यह इनकार की मुद्रा केवल इसलिए होती है, क्योंकि हम एक बोझ लेकर चलते हैं। 

हम सभी बहुत अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हैं, हमारी शिक्षा की अलग-अलग पृष्ठभूमि, हमारे समाज की अलग-अलग पृष्ठभूमि जहां हम पैदा हुए हैं, हमारे स्कूलों की अलग-अलग पृष्ठभूमि। हम सभी अलग-अलग संस्कृति से आते हैं। हम अलग-अलग भाषा बोलते हैं, एक ही भाषा की अलग-अलग बोलियाँ बोलते हैं। 

सबसे पहले इस पर ध्यान देने की जरूरत है, हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी, तभी हम लैंगिक न्याय प्राप्त कर पाएंगे, या फिर हम समाज में लैंगिक आधार पर होने वाले सभी तरह के अन्याय को दूर कर पाएंगे।

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