प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में करीब 95 किस्मों की जड़ी-बूटियां विलुप्त होने के कगार पर

हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में करीब 95 किस्मों की जड़ी-बूटियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसमें 14 जड़ी-बूटियां ऐसी है जो जंगलों से करीब 80 से 95 फीसदी तक विलुप्त हो चुकी

Jan 9, 2025 - 13:01
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प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में करीब 95 किस्मों की जड़ी-बूटियां विलुप्त होने के कगार पर

यंगवार्ता न्यूज़ - कुल्लू     09-01-2025

हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में करीब 95 किस्मों की जड़ी-बूटियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसमें 14 जड़ी-बूटियां ऐसी है जो जंगलों से करीब 80 से 95 फीसदी तक विलुप्त हो चुकी हैं। इसका खुलासा जीबी पंत राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान मौहल कुल्लू और कुमांऊ यूनिवर्सिटी नैनीताल के शोधकर्ता डॉ. ओम राणा के शोध में हुआ है। 

उन्होंने चंबा जिले के जनजातीय क्षेत्र पांगी की जैव विविधता और संरक्षण को लेकर 2015 से 2024 तक करीब 10 साल शोध किया। शोध में सामने आया कि लोग अपनी आर्थिकी को मजबूत करने और रोजमर्रा के इस्तेमाल के लिए इन जड़ी-बूटियों को बड़े पैमाने पर दोहन कर रहे हैं। इसमें 14 जड़ी-बूटियाें को सबसे अधिक निकाला जा रहा है। 

अब हालत यह है कि पांगी के जंगल में ये जड़ी-बूटियां ढूंढे नहीं मिल रही हैं। मुख्य रूप से नागछतरी, जंगली लहसुन, चिलगोजा, काला जीरा, कडू पतीश, शुआन, थांगी (बादाम), रतन जोत, चोरा, पवाइन, तिला, सालम पंजा, शिंगुजीरा और सालम मिसरी शामिल हैं। शोध में सामने आया है कि सबसे अधिक नागछतरी और जंगली लहसुन को निकाला गया है। इसका इस्तेमाल लोगों ने अपनी आर्थिक मजबूती के लिए किया है। 

इसके अलावा 18 जड़ी बूटियां और पेड़-पौधे ऐसे हैं जो अतिसंवेदनशील श्रेणी में पहुंच गए हैं। 25 जड़ी-बूटियां असुरक्षित और 38 खतरे के नजदीक पहुंच गई हैं। शोध में यह बात भी सामने आई है कि 2007 में पांगी में जंगली लहसुन को प्रति व्यक्ति एक क्विंटल तक निकाला गया। अब मुश्किल से किलोभर भी नहीं मिल पाता है। 

डॉ. ओम राणा ने कहा कि यह शोध कार्य जीबी पंत के पूर्व प्रभारी डॉ. एसएस सामंत और प्रो. एके यादव के मार्गदर्शन से पूरा हुआ है। शोधकर्ता डॉ. ओम राणा का कहना है कि लोग बीज तैयार होने से पहले ही इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। कच्चा निकालने से इन जड़ी-बूटियों का जंगल में उत्पादन भी कम हो गया है। जैव विविधता एवं सतत विकास के लिए सरकार, वन विभाग और जैव विविधता संरक्षण समिति को इनके संरक्षण के लिए कार्य करना होगा। इसके साथ ही लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाना होगा।

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