यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 25-10-2025
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा में अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के पैतृक संपत्ति में अधिकार पर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को निरस्त करना दुर्भाग्यपूर्ण तथा महिला विरोधी फैसला बताया है। गौर हो कि हिमाचल प्रदेश में किन्नौर और लाहौल स्पीति जिला अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल हैं तथा इन जिलों में लड़कियों को पैतृक संपत्ति में कानूनन अधिकार नहीं मिल रहा है। वहीं देश में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत महिलाओं को पैतृक संपत्ति पर कानून अधिकार मिलता है। हालांकि यहां भी अधिकार केवल कागजों में ही रहता है , परन्तु जनजातीय क्षेत्रों में वो अधिकार कानूनन और कागज़ी भी नहीं मिल पा रहे हैं। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) बेटियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार देने में बाधा बन रही है।
इसलिए जनवादी महिला समिति मांग करती है कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2 (2)को को हटाया जाए तथा हिमाचल प्रदेश में व अन्य क्षेत्रों में जहां क्षेत्रों को जन जातिय घोषित किया जा रहा है। वहां महिलाओं के पैतृक सम्पत्ति पर अधिकार सुरक्षित किये जाएं ताकि महिलाओं के नागरिक अधिकार और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 कानूनी अधिकार देने सुनिश्चित किए जाएं। हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय ने 23 जून 2015 के निर्णय में पैरा 63 को जोड़ कर के महिलाओं के पैतृक सम्पत्ति पर अधिकार सुरक्षित किये गए थे , परंतु विडम्बना है कि आज देश के सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इस निर्णय के पैराग्राफ के फैसले को निरस्त कर दिया।
जनवादी महिला समिति मांग करती है कि केंद्र सरकार महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कानून में संशोधन करें अन्यथा देश में महिलाओं की आधी आबादी संपत्ति के अधिकार से वंचित रहेगी और देश में जो संविधान सभी नागरिकों को अधिकार देता है उन नागरिक अधिकारों को सभी के लिए लागू किए जाएं। जनवादी महिला समिति की राज्य अध्यक्ष वीना वैद्य और राज्य सचिव फालमा चौहान ने बताया कि जनजातीय क्षेत्रों में परम्परागत कस्टृमरी ला ( रिवाजे - आम ) को देखते हुए हमें महिलाओं के अन्याय और भेदभाव को मान्यता न देकर महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करते हुए बाकि रीति -रिवाजों को मान्यताओं के रूप में देखने और आगे बढ़ाते हुए जनजातीय क्षेत्रों को मान्यता दिए जाएं।
न कि महिलाओं के अधिकारों को छीन कर और महिलाओं के साथ सामाजिक अन्याय और शोषण से बचाया ।आज महिला जब घरेलू हिंसा की शिकार होती है तो न ही उसके पास मायके में संपति होती है और न ही ससुराल में तो माता पिता को भी पूरे अधिकार लड़कियों को अपनी संपत्ति में देने चाहिए और ससुराल में भी महिलाओं के नाम संयुक्त पट्टे होने चाहिए समय के अनुसार इस सोच को बदलने की जरूरत है।