एम्स ने बाल चिकित्सा क्षेत्र में दो अत्यंत जटिल और दुर्लभ मामलों के किये सफल ऑपरेशन कर बचाई मरीज की जान
हिमाचल प्रदेश के एम्स बिलासपुर ने बाल चिकित्सा क्षेत्र में दो अत्यंत जटिल और दुर्लभ मामलों के सफल ऑपरेशन किए। इन मामलों में जहां एक ओर 11 वर्षीय बालिका के फेफड़े से एक विशाल हाइडेटिड सिस्ट को हटाया गया, वहीं दूसरी ओर सात माह के एक शिशु की जन्मजात डायाफ्रामेटिक हर्निया की आपातकालीन सर्जरी कर उसकी जान बचाई

यंगवार्ता न्यूज़ - बिलासपुर 28-06-2025
हिमाचल प्रदेश के एम्स बिलासपुर ने बाल चिकित्सा क्षेत्र में दो अत्यंत जटिल और दुर्लभ मामलों के सफल ऑपरेशन किए। इन मामलों में जहां एक ओर 11 वर्षीय बालिका के फेफड़े से एक विशाल हाइडेटिड सिस्ट को हटाया गया, वहीं दूसरी ओर सात माह के एक शिशु की जन्मजात डायाफ्रामेटिक हर्निया की आपातकालीन सर्जरी कर उसकी जान बचाई।
इन दोनों जटिल मामलों में बाल शल्य चिकित्सा, एनेस्थीसिया, क्रिटिकल केयर और पीडियाट्रिक आईसीयू टीमों के सटीक समन्वय और विशेषज्ञता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पहले मामले मं कुल्लू की रहने वाली 11 साल की बच्ची को सांस लेने में दिक्कत और बुखार की शिकायत के बाद नेरचौक मेडिकल कॉलेज से एम्स बिलासपुर रेफर किया गया।
जांच में उसके दाहिने फेफड़े में 12×10×8 सेमी की हाइडेटिड सिस्ट पाई गई, जो इचिनोकोकस ग्रेन्यूलोसस नाम के परजीवी के संक्रमण के कारण बनी थी। यह संक्रमण बच्चों में अत्यंत दुर्लभ होता है। एम्स के बाल शल्य चिकित्सा विभाग में डॉ. विजय कुमार सेठी के मार्गदर्शन में डॉ. सहायक प्रोफेसर संदीप सिंह सेन और जेआर डॉ. अभिषेक पालकी टीम ने वीडियो-असिस्टेड थोरोस्कोपिक सर्जरी से इस सिस्ट को सफलतापूर्वक हटाया।
यह प्रक्रिया तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण थी, क्योंकि सिस्ट का आकार बड़ा था और फेफड़े के भीतर सीमित जगह थी। सर्जरी के बाद बच्ची को तीन दिन तक पीडियाट्रिक आईसीयू में विशेष निगरानी में रखा गया, जहां डॉ. श्रीराम पोथा प्रेगा डा और डॉ. जसबीर ने देखरेख की। अब बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ है और अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
दूसरे मामले में सात माह के एक शिशु को उल्टी और तेज सांस की तकलीफ के चलते एम्स बिलासपुर के आपातकालीन विभाग लाया गया। जांच में उसके शरीर में बाईं ओर जन्मजात डायाफ्रामेटिक हर्निया पाया गया, जिसमें आंतें छाती की गुहा में पहुंच चुकी थीं और फेफड़े को दबा रही थीं। गंभीर हालत देखते हुए तुरंत थोरोस्कोपिक सर्जरी का निर्णय लिया गया।
डॉ. संदीप सिंह सेन और डॉ. अभिषेक पाल की टीम ने सर्जरी कर आंतों को पेट में वापस स्थापित किया और डायाफ्राम की मरम्मत की। इस दौरान एनेस्थीसिया टीम ने भी आवश्यक सहयोग प्रदान किया। सर्जरी के बाद शिशु को वेंटिलेटर पर रखा गया और कुछ ही समय में वह सामान्य अवस्था में लौट आया। वर्तमान में उसकी स्थिति स्थिर है और वह सामान्य आहार भी लेने लगा है।
बच्ची की सर्जरी के दौरान एनेस्थीसिया टीम ने भी अहम भूमिका निभाई। विभागाध्यक्ष डॉ. विजयलक्ष्मी शिवपुरापु और डॉ. वृंदा चौहान ने डबल ल्यूमेन एंडोट्रेकियल ट्यूब के माध्यम से एक ही फेफड़े में वेंटिलेशन देकर सर्जरी को संभव बनाया। ऑपरेशन के दौरान ब्रोंको-प्लूरल फिस्टुला जैसी जटिलता उत्पन्न हुई, लेकिन टीम ने दोनों फेफड़ों को अलग-अलग वेंटिलेट कर बच्ची के ऑक्सीजन स्तर को स्थिर बनाए रखा।
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